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________________ खानेके अनन्तर खानेवाले के मुखसे लार निकलती है जो कि, पान, सुपारी आदि बिना खाये शुद्ध नहीं होती, ऐसे कष्टोंको सहन करता हुआ भी कोई २ जीव उसी आहार को अच्छा मानता है । अधिक क्या कहा जाय, डोक्टर की भांति फिर उसे उन पदार्थों से घृणाभी नहीं होती । जैसे डाक्टर पहिले जब मुरदे को चीरता है तो उसे कुछ घृणा भी आती है किन्तु पीछे धीरे २ बिलकुल घृणा जाती रहती है उसी तरह मांसाहारी का हाल समझना चाहिए। अगर मछली आदि खानेवाले से पूछा जाय तो मालूम होगा कि मछली आदि के काटने पर जो जल उसमें से निकलता है वह कैसी दुर्गन्धि पैदा करता है ? कि जिसकी दुर्गन्धि से भी मनुष्य को कय ( वमन ) होजाता है। हा! ऐसे नीच पदार्थों को उत्तम पुरुष कैसे खाते होंगे ? यह भी एक शोचने की बात है। वनस्पति, जो कि सर्वथा मनुष्य को सुखकर है, उसका भी पुण्य यदि दुर्गन्धित होजाय तो उसे मनुष्य फेंक देते हैं, किन्तु मल, मूत्र, रुधिर आदि से संयुक्त, सड़े हुए और कीड़ोंसे भरे हुए भी मांस को यदि मनुष्य न छोड़ें तो उन्हें मनुष्य कैसे कहना चाहिए। कोई २ मांसाहारी जो यह कहते हैं कि मांस खाने से शरीरमें बल बढ़ता है और वीरता आती है वह उनलोगों की भूल है, क्योंकि यदि मांसाहार से बल बढ़ता होता तो हाथी से सिंह अधिक बलवान् होता, क्योंकि जो बोझा हाथी उठाता है वह सिंह कदापि नहीं उठा सकता । अगर कोई यह कहे कि हाथीसे सिंह यदि बलवान् नहीं होता तो हाथी को कैसे मारडालता है ?
SR No.002390
Book TitleAhimsa Digdarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaydharmsuri
PublisherYashovijay Jain Granthmala
Publication Year1923
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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