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________________ जीने की कला जलधारा नहीं होगी। ऐसा ही गुरु और शिष्य का संबंध है। गुरु मेघ बनकर आता है, इसलिए दिखायी नहीं पड़ता; सूक्ष्म तल पर आता है; तुम्हारे अंतस्तल में आता है, इसलिए दिखायी नहीं पड़ता है। __ तुम जब गुरु की तरफ जाते हो, तो दिखायी पड़ता है कि चले। गंगा जब जाती है सागर की तरफ, तो अंधे को भी दिखायी पड़ता है कि चली गंगा सागर की तरफ। यह तो बहुत गहरी आंख हो तो दिखायी पड़ता है : जब बादलों की तरफ उठने लगी भाप, तो सागर चला गंगा की तरफ; गुरु चला शिष्य की तरफ। पांचवां प्रश्नः मेरे प्रश्न के उत्तर में आपने विनोदपूर्वक आत्मघातों के असफल होने की कई कहानियां कहीं। लेकिन मैं उनमें से किसी विधि का विचार नहीं करता हूं। मुझे तो सदा एक ही खयाल आता है कि अपने मकान से कूद पडूं। मैं रहता हूं बंबई की एक गगनचुंबी इमारत में तेरहवीं मंजिल पर। भगवान, यह विधि कैसे असफल हो सकती है? इस विधि का मुझे पता था। मगर यह बड़ी खतरनाक विधि है और इसलिए - इसको मैंने छोड़ दिया था। जो विधियां मैंने कही थीं, उनमें असफलता हो सकती थी। इस विधि में और भी खतरा है। एक झूठा लतीफा। टुनटुन अपने मोटे शरीर से परेशान हो गयी और तीसरे मंजिल मकान से, जहां वह रहती थी, कूद पड़ी। सुबह जब उसकी अस्पताल में आंख खुली, तो डाक्टर से उसने पूछाः डाक्टर! क्या मैं अभी जिंदा हूं? डाक्टर ने कहाः देवी! आप तो जिंदा हैं; मगर वे तीनों मर गए जिनके ऊपर आप गिरी थीं! इसलिए छोड़ दिया था इस विधि को। यह तो आप करना ही मत। और वह तो तीसरी मंजिल से गिरी थी, तीन मारे; आप तेरहवीं मंजिल पर रहते हैं, आप तेरह मार सकते हो! आप कृपा करके यह मत करना। ___आत्मघात में इतना रस क्यों है? इतना चिंतन जीवन जीने के लिए करो; इतनी शक्ति और ध्यान जीवन की खोज में लगाओ, तो तुम्हें तेरहवीं मंजिल से कूदकर, सड़क पर गिरकर, मिटना न पड़े। तुम्हें पंख लग जाएं; तुम आकाश में उड़ जाओ। इतना विराट अवसर जीवन का और तुम आत्मघात की ही सोचते रहोगे? इतनी जल्दी भी क्या है? मृत्यु तो अपने से ही हो जाएगी; तुम न चाहोगे, तो भी हो जाएगी। 57
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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