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________________ एस धम्मो सनंतनो क्या, पीछे क्या। वे दोनों साथ-साथ हैं। संयुक्त हैं। युगपत घटते हैं। 'जिसमें ध्यान और प्रज्ञा हैं, वही निर्वाण को उपलब्ध हो जाता है। ' निर्वाण यानी उसका अंधेरा मिट जाता है। उसके जीवन में फिर रोशनी ही रोशनी हो जाती है। इन भिक्षुओं को, जो कभी चोर थे, बुद्ध ने ये अभूतपूर्व वचन कहे। वे करीब पहुंच रहे थे; आखिरी क्षण आ रहा था । नाव को जरा और उलीचना था। कुछ थोड़ी सी चीजें छेदनी थीं; कुछ थोड़ी सी चीजें छोड़नी थीं; कुछ थोड़ी सी चीजें अतिक्रमण करनी थीं; कुछ थोड़ी सी चीजें भावना करनी थीं। उस आखिरी घड़ी में बुद्ध के सहारे की जरूरत थी । सदगुरु के सहारे की जरूरत दो जगह सर्वाधिक है : पहली घड़ी में और अंतिम घड़ी में । मध्य का मार्ग इतना कठिन नहीं है। पहली घड़ी कठिन; अंतिम घड़ी कठिन । और ये दोनों घटनाएं दोनों के संबंध में हैं। पहली, पहली घड़ी के संबंध में । ब्राह्मण भोजन करने बैठा है। उसके भीतर निश्चय का उदय हो रहा है; और बुद्ध का जाना - वह पहली घड़ी थी। वहां पहला धक्का चाहिए। एक दफा आदमी चल पड़े, तो चलता जाता है। और यह दूसरी घटना आखिरी घड़ी की । वे चोर ध्यान में गहरे उतरते-उतरते समाधि के करीब पहुंच रहे थे; आखिरी घड़ी करीब आ रही थी । उनको आखिरी धक्का चाहिए, ताकि वे महाशून्य में, निर्वाण में विलीन हो जाएं। 1 इन पर मनन करना। ये सूत्र तुम्हारे जीवन में भी ऐसी ही क्रांति ला सकते हैं। आज इतना ही । 34
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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