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________________ एस धम्मो सनंतनो जिस भीड़ से बचने निकले थे । वे सारे लोग वहीं पहुंच गए थे। सभी को जाना है ! भीड़ से बचना है! सारी भीड़ वहीं पहुंच गयी ! घर में भी इससे ज्यादा आराम था। अगर घर ही रुक गए होते, तो आज शांति होती । क्योंकि सारा गांव तो गया था। लेकिन घर कौन रुके ! खालीपन - घबड़ाहट होती है। बेचैनी होती है। कुछ करने को चाहिए । तुमने कभी खाली एक दिन गुजारा ? एक दिन सुबह छह बजे से सांझ छह बजे तक कुछ न किया हो। पड़े रहे। अखबार भी न पढ़ा हो । रेडियो भी न खोला हो । पत्नी से भी नहीं झगड़े हो । पड़ोसियों से भी जाकर गपशप न की हो। एक दिन तुमने कभी ऐसा किया है कि कुछ न किया हो ! तुम्हें याद न आएगा ऐसा जिंदगी में कोई दिन, जिस दिन तुमने कुछ न किया हो। क्या कारण होगा कि कभी तुमने इतना विश्राम भी न जाना ? खाली होने में डर लगता है। खाली होने में भय लगता है कि यह भीतर अगर मैं गया खालीपन में और वहां कुछ न पाया तो ! मुल्ला नसरुद्दीन एक ट्रेन में सफर कर रहा था । टिकिट कलेक्टर आया। टिकिट पूछी। मुल्ला बहुत से खीसे बना रखा है । कमीज में भी, कोट में भी, अचकन में भी सब में कई खीसे और उनमें चीजें भरी रखता है। एक खीसा उलटा, दूसरा उलटा- - सब खीसे उलटा । मगर एक कोट के खीसे को नहीं छू रहा है। सब में देख लिया, टिकिट नहीं मिल रही है। आखिर उस टिकिट कलेक्टर ने कहा कि महानुभाव ! आप इस खीसे को नहीं देख रहे हैं कोट के । उसने कहा : उसको नहीं देख सकता। अगर उसमें न मिली, तो फिर ? फिर मारे गए ! वही तो एक आशा है कि शायद वहां हो। उस खीसे की तो बात ही मत उठाना। फिर अपने दूसरे खीसों में टटोलने लगा। तुम बाहर टटोलते रहते हो, क्योंकि तुम डरते हो कि अगर भीतर खोजा और वहां भी न पाया – फिर ? फिर क्या होगा ? फिर गए काम से ! इसलिए आदमी बाहर दौड़ता है। खूब दौड़-धूप करता है। मोह यानी बाहर-बाहर- - बाहर । व्यस्तता अर्थात बाहर । —- अव्यस्त हुए, खाली हुए, विराम आया, तो भीतर जाना पड़ेगा। और तो जाने को कोई जगह नहीं बचती। बाहर से ऊर्जा उलझी थी; सुलझ गयी, तो कहां जाएगी ? लौटेगी अपने घर पर। जैसे पंछी उड़ा – उड़ा — और थक गया, तो लौट आता है अपने नीड़ में। ऐसे ही तुम अगर बाहर कोई उलझन न पाओगे, तो कहां जाओगे ? लौट आओगे अपने नीड़ में। और डर लगता है कि वहां अगर सन्नाटा हुआ, वहां अगर कोई न मिला, अगर वहां कुछ भी न हुआ... ! सुनते हैं कि वहां परमात्मा का वास है। जरूर होगा। मानते हैं कि होगा। मगर 308
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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