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________________ अप्प दीपो भव! तब बुद्ध ने कहा था ः आनंद! कितनी बार मैंने तुझसे कहा है, अप्प दीपो भव! अपना दीया बन। तू सुनता नहीं। अब तू समझ। चालीस साल निरंतर कहने पर तूने नहीं सुना, इसलिए रोना पड़ रहा है। देख उनको, जिन्होंने सुना। वे दीया बने शांत अपनी जगह बैठे हैं। बुद्ध के जाने से एक तरह का संवेग है। इस अपूर्व मनुष्य के साथ इतने दिन रहने का मौका मिला। आज अलग होने का क्षण आया। तो एक तरह की उदासी है। मगर दहाड़ मारकर नहीं रो रहे हैं। क्योंकि यह डर नहीं है कि अंधेरा हो जाएगा। अपना-अपना दीया उन्होंने जला लिया है। ___ तुम पूछते हो : 'भगवान बुद्ध ने कहा है, अपने दीए आप बनो, तो क्या सत्य की खोज में किसी भी सहारे की कोई जरूरत नहीं है?' ___ यह जरा नाजुक सवाल है। नाजुक इसलिए कि एक अर्थ में जरूरत है और एक अर्थ में जरूरत नहीं है। इस अर्थ में जरूरत है कि तुम अपने से तो शायद जाग ही न सकोगे; तुम्हारी नींद बड़ी गहरी है। कोई तुम्हें जगाए। लेकिन इस अर्थ में जरूरत नहीं है कि किसी दूसरे के जगाने से ही तुम जाग जाओगे। जब तक तुम ही न जागना चाहो, कोई तुम्हें जगा न सकेगा। और अगर तुम जागना चाहो, तो बिना किसी के जगाए भी जाग सकते हो, यह संभावना है। बिना गुरु के भी लोग पहुंचे हैं। मगर इसको जड़ सिद्धांत मत बना लेना कि बिना गुरु के कोई पहुंच गया, तो तुम भी पहुंच जाओगे। मेरे पास लोग आ जाते हैं। वे कहते हैं : आपसे एक सलाह लेनी है। अगर गुरु न बनाएं, तो हम पहुंच सकेंगे कि नहीं? मैंने कहा कि तुम इतनी ही बात खुद नहीं सोच सकते; इसके लिए भी तुम मेरे पास आए! तुमने गुरु तो बना ही लिया! गुरु का मतलब क्या होता है? किसी और से पूछने गए; यह भी तुम खुद न खोज पाए। ___ मुझसे लोग आकर पूछते हैं कि आपका गुरु कौन था? हमने तो सुना कि आपका गुरु नहीं था। जब आपने बिना गुरु के पा लिया, तो हम क्यों न पा लेंगे? मैं उनसे कहता हूं : मैं कभी किसी से यह भी पूछने नहीं गया कि बिना गुरु के मिलेगा कि नहीं! तुम जब इतनी छोटी सी बात भी खुद निर्णय नहीं कर पाते हो, तो उस विराट सत्य के निर्णय में तुम कैसे सफल हो पाओगे? तो एक अर्थ में गुरु की जरूरत है। और एक अर्थ में जरूरत नहीं है। अगर तुम्हारी अभीप्सा प्रगाढ़ हो, तो कोई जरूरत नहीं है। लेकिन जरूरत या गैर-जरूरत, इसकी समस्या क्यों बनाते हो? जितना मिल सके किसी से ले लो। मगर इतना ध्यान रखो कि दूसरे से लिए हुए पर थोड़े दिन काम चल जाएगा। अंततः तो अपनी समृद्धि खुद ही खोजनी चाहिए। किसी के कंधे पर सवार होकर थोड़ी देर चल लो, अंततः 249
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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