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________________ एस धम्मो सनंतनो रोटी-रोजी चाहिए। छप्पर चाहिए। और एक बच्चा कमरे में चक्कर लगा रहा है। इसमें क्या कारण है? एक आदमी सुबह घूमने निकला है। कहीं जा नहीं रहा है। इसमें कोई कारण नहीं है। कहीं से लौट आए। कहीं बैठ जाए। न जाए, तो कोई बात नहीं है। यह जगत अकारण है। यहां इतना सब कुछ हो रहा है, लेकिन इस होने के पीछे कोई हेतु, कोई व्यवसाय नहीं है। जिसने ऐसा जाना, वह मुक्त हो गया। जिसने ऐसा पहचाना, उसके सारे बंधन गिर गए। क्योंकि फिर क्या बंधन रहे! फिर क्या चिंता रही! चिंता तभी तक हो सकती है, जब हम कुछ करने को उतारू हैं। अगर यह जगत अपने से हो ही रहा है, तो चिंता कहां रही? __तुम्हें चिंता पकड़ सकती है, अगर तुम सोचो कि मेरे शरीर के भीतर खून बह रहा है, कहीं रुक जाए रात सोते में! न बहे। फिर क्या करूंगा? हृदय धड़क रहा है और हम तो सो गए और न धड़के। फिर मैं क्या करूंगा? श्वास तो चल रही है; रुक जाए; फिर मैं क्या करूंगा? तो तुम मुश्किल में पड़ जाओगे। तो चिंता पैदा हो जाएगी। जब तक श्वास चल रही है, चल रही है। जब नहीं चल रही है, तब नहीं चल रही है। न चलने में कोई कारण है; न न चलने में कोई कारण है। लीला है। खेल ___इस तरह जीवन को देखो, तो तुम चिंताओं के बाहर होने लगो। और जो चिंताओं के बाहर हुआ, वही मंदिर में प्रविष्ट होता है। 'कभी तुम जुदा न होगे, मुझे यह ऐतबार क्यों है?' यह ऐतबार भी प्रेम का अंतरंग भाग है। जैसे फूल में सुगंध होती है, ऐसे प्रेम में ऐतबार होता है। प्रेम में श्रद्धा का दीया जलता है। प्रेम में एक भरोसा होता है। उस भरोसे का भी कोई कारण नहीं है। लेकिन बस, प्रेम में वह भरोसा पाया जाता है। जैसे फूलों में सुगंध पायी जाती है। जैसे पानी नीचे की तरफ बहता है और आग गरम है। ऐसे ही प्रेम का गुण श्रद्धा है। वह उसकी आत्मा है। प्रेम के दीए में श्रद्धा का प्रकाश होता रहता है। प्रश्न प्यारा है; मगर उत्तर मत खोजो। उत्तर को जाने दो; प्रेम को जीयो। और यह जो ऐतबार जगा है, यह जो श्रद्धा जगी है, इस पर समर्पित हो जाओ। इस पर सब न्योछावर कर दो। इसमें डुबकी मार लो। इसमें मिट जाओ। इसमें खो जाओ। और तुम सब पा लोगे। खोना ही पाने का सूत्र है। जिसने बचाया, वह चूका। जिसने कंजूसी की, वह गरीब रह गया। जिसने लुटाया, उसने पाया। जो डूबा, वह पहुंचा। मझधार में डूबने की हिम्मत चाहिए, तो मझधार ही किनारा हो जाती है। और मझधार ही किनारा हो, तभी कुछ मजा है। 246
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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