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________________ ब्राह्मणत्व के शिखर-बुद्ध जानना चाहता है। इसलिए नहीं कि जनाना चाहता है। इसलिए नहीं कि खंडन करने को उत्सुक है। बल्कि इसलिए कि अब रूपांतरित होने की तैयारी है। ___तो जब कोई रूपांतरित होना चाहता है, तो उत्तर तत्क्षण पहुंच जाते हैं हृदय के गहनतम में। हृदय की अंतिम गहराई को छू लेते हैं; स्पंदित कर देते हैं। संवेग का उदय होता है। व्यक्ति रोमांचित हो जाता है। समाधान उपलब्ध होता है। भगवान के उत्तरों को पा वह समाधान को उपलब्ध हुआ। समाधि लग गयी। फिर घर नहीं लौटा। बुद्ध के पास जाकर जो लौट आए, वह गया ही नहीं। गया होगा—फिर भी गया नहीं। गया होगा-पहुंचा नहीं। शरीर से गया होगा-मन से नहीं गया। __ जो बुद्ध के पास गया, वह गया ही! सदा को गया। वह उनका ही होकर लौटेगा। उस रंग में बिना रंगे जो लौट आए, वह गया—ऐसा मानना ही मत। फिर घर नहीं लौटा। बुद्ध का ही हो गया। बुद्ध में ही खो गया। वह उसी दिन प्रव्रजित हुआ और उसी दिन अर्हत्व को उपलब्ध हुआ। - इतनी गरमी में जो प्रव्रजित होगा, इतनी गरमी से जो ठंडा होगा, वह रूपांतरित हो जाएगा। उपेक्षा मत करना। धन्यभागी हो, अगर प्रेम कर सको। अगर प्रेम न कर सको, तो दूसरा धन्यभाग—कि घृणा करना। मगर उपेक्षा मत करना। नीत्शे ने लिखा है कि ईश्वर मर गया है। प्रमाण? प्रमाण कि अब न तो कोई ईश्वर के पक्ष में है और न कोई विपक्ष में है। सब लोग उपेक्षा से भर गए हैं। अब कोई विवाद भी नहीं करता कि ईश्वर है या नहीं। अगर कहीं तुम विवाद भी करो, तो लोग कहते हैं : भई, होगा। उसको उस पर छोड़ो। अभी तो चाय पीयो। कि अभी रेडियो से न्यूज आ रही है, गड़बड़ बीच में न करो। ईश्वर होगा। मान लिया, होगा। झंझट कौन खड़ी करे! नाहक विवाद कौन करे! समय कौन खराब करे! . लोग उपेक्षा से जब भरते हैं, तभी ईश्वर से संबंध छूट जाता है। अच्छे थे दिन, जब नास्तिक थे और आस्तिक थे और गहन विवाद था और गरमा-गरमी थी। अच्छे थे दिन, क्योंकि ईश्वर जिंदा था। जिंदा था अर्थात हमसे संबंध होता था; हमसे जुड़ता था। नास्तिक कभी आस्तिक हो सकता है। लेकिन जो कहता है : भई, होगा। सताओ न। बेकार की बातें न उठाओ। हम कहां कहते हैं कि नहीं है। हम मंदिर जाते हैं। गीता पर फूल भी चढ़ा देते हैं। कभी-कभी गीता उलट-पलट भी लेते हैं। होगा। जरूर होगा। आप कहते हैं, तो होना ही चाहिए। मगर व्यर्थ की बकवास खड़ी न करो। ऐसा जो आदमी है, इसके जीवन में ईश्वर मर गया है। ऐसे जीवन में बुद्ध से कोई संसर्ग नहीं हो सकता। 237
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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