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________________ बुद्धत्व का आलोक उसको क्रोध नहीं आएगा। जो ध्यान को उपलब्ध हो गया, उसको लोभ नहीं आएगा। जो ध्यान को उपलब्ध हो गया, उसको मोह नहीं आएगा। __ क्यों? उसके घर अब दीया जल गया है। और दीया जला हो, तो अंधेरा भीतर नहीं आता। और उसके भीतर पहरेदार जग गया है। और पहरेदार जगा हो, तो चोर नहीं आते। आस्रवरहित... । अब शत्रु भीतर प्रवेश नहीं कर सकते। और जिसने उत्तमार्थ को पा लिया है...। दुनिया में दो अर्थ हैं। एक अर्थ शरीर का है, और एक अर्थ आत्मा का। आत्मा का अर्थ है-उत्तमार्थ। परमार्थ। आखिरी अर्थ जिसने पा लिया है, उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं। दूसरा दृश्यः भगवान के मिगारमातु-प्रसाद में विहार करते समय एक दिन आनंद स्थविर ने भगवान को प्रणाम करके कहा : भंते! आज मैं यह जानकर धन्य हुआ हूं कि सब प्रकाशों में आपका प्रकाश ही बस प्रकाश है। और प्रकाश तो नाममात्र को ही प्रकाश कहे जाते हैं। आपके प्रकाश के समक्ष वे सब अंधेरे जैसे मालूम हो रहे हैं। भंते! मैं आज ही आपको और आपकी अलौकिक ज्योतिर्मयता को देख पाया हूं, दर्शन कर पाया हूं। और अब मैं कह सकता हूं कि मैं अंधा नहीं हूं। ___ शास्ता ने यह सुन आनंद की आंखों में देर तक झांका। और और-और आलोक उसके ऊपर फेंका। आनंद डूबने लगा होगा उस प्रसाद में, उस प्रकाश में, उस प्रशांति में। और फिर उन्होंने कहाः हां, आनंद, ऐसा ही है। लेकिन इसमें मेरा कुछ भी नहीं है। मैं तो हूं ही नहीं, इसीलिए प्रकाश है। यह बुद्धत्व का प्रकाश है, मेरा नहीं। यह समाधि की ज्योति है, मेरी नहीं। मैं मिटा, तभी यह ज्योति प्रगट हुई है। मेरी राख पर यह ज्योति प्रगट हुई है। तब यह सूत्र उन्होंने आनंद को कहा : दिवा तपति आदिच्चो रत्तिं आभाति चन्दिमा। सन्नद्धो खत्तियो तपति झायी तपति ब्राह्मणो। अथ सब्बमहोरत्तिं बुद्धो तपति तेजसा।। _ 'दिन में केवल सूरज तपता है; दिन में केवल सूरज प्रकाश देता है। रात में चंद्रमा तपता है। रात में चंद्रमा प्रकाश देता है। अलंकृत होने पर राजा तपता है।' __ जब खूब स्वर्ण सिंहासनों पर राजा बैठता है, बहुमूल्य वस्त्रों को पहनकर, हीरे-जवाहरातों के आभूषणों में, हीरे-जवाहरातों का ताज पहनता-तब राजा 167
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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