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________________ एस धम्मो सनंतनो लेकिन आमतौर से लोग समझते हैं कि सभी ब्राह्मण द्विज हैं। ब्राह्मण को द्विज कहते हैं। गलत। द्विज को ब्राह्मण कहो। द्विज का अर्थ है: जो दुबारा जन्मा। एक जन्म मां-बाप से मिला। फिर दूसरा जन्म गुरु से मिला। ___ आज वक्कलि द्विज हुआ, ब्राह्मण हुआ। आज बुद्ध के कुल में जन्मा। एक नयी प्रीति उमड़ी। विराट को सामने खड़े देखा। उस विराट में शून्य हो गया होगा। लीन हो गया होगा। वे किरणें उसे धो गयीं; साफ कर गयीं; स्वच्छ कर गयीं। वह नया हो आया। नए मनुष्य का जन्म हुआ, जिस पर पुराने की अब छाया भी नहीं, धूल भी नहीं। पुराने से इसका कोई संबंध भी नहीं है। यह पुराने से असंबंधित है। ऐसी घड़ी में भगवान ने ये सूत्र कहे थे। छिंद सोतं परक्कम्म कामे पनुद ब्राह्मण। संखारानं खयं ञत्वा अकतनृसि ब्राह्मण ।। 'हे ब्राह्मण, पराक्रम से तृष्णा के स्रोत को काट दे और कामनाओं को दूर कर दे। हे ब्राह्मण, संस्कारों के क्षय को जानकर तुम अकृत-निर्वाण-का साक्षात्कार कर लोगे।' बुद्ध ने कहा : जैसा मैं हूं, ऐसा ही तू भी हो सकता है। बस, अब कामनाओं को एक झटके में काट दे। अब दुबारा कामना न करना। फिर शूद्र मत हो जाना। इस घड़ी को ठीक परख ले, पहचान ले, पकड़ ले। अब यह घड़ी तेरी जिंदगी बने। अब यह घड़ी तेरी पूरी जिंदगी का सार हो जाए। इसी के केंद्र पर तेरे जीवन का चाक घूमे। 'हे ब्राह्मण...।' सुनते हैं फर्क? अभी कुछ ही देर पहले, कुछ ही घंटों पहले कहा था : वक्कलि हट! हट जा। हट जा वक्कलि! हटवा दिया था। इसके पहले कभी बुद्ध ने उसको ब्राह्मण कहकर संबोधन नहीं किया था। वक्कलि। आज पहली दफा कहाः हे ब्राह्मण! आज वह ब्राह्मण हुआ है। छिंद सोतं परक्कम्म कामे पनुद ब्राह्मण। __ इस घड़ी को पहचान, इस घड़ी को पकड़। कामनाओं को काट; तष्णाओं को उच्छेद कर दे; संस्कारों का क्षय हो जाने दे। अब यह जो शून्य तेरे भीतर घड़ीभर को उतरा है, यही तेरी नियति हो जाए, यही तेरा स्वभाव हो जाए, तो तू अकृत को जान लेगा। अकृत अर्थात निर्वाण। अकृत—जो किए से नहीं होता। अकृत-जो करने से कभी हुआ नहीं; जो सब करना छोड़ देने से होता है। जो समर्पण में होता है, संकल्प 162
SR No.002389
Book TitleDhammapada 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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