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________________ एस धम्मो सनंतनो गयी थी। हालत ऐसी आ गयी थी कि एक-दूसरे की गरदन पर झपटने ही वाली थीं! तभी इस पति ने कहा था। तुम्हारा मन मंदिर में बैठकर भी संसारी हो सकता है। संसार में होकर भी संन्यासी हो सकता है। तुम पर सब निर्भर है। तुम किस लोक के लिए अपने को खुला छोड़ते हो...। इसलिए मैं अपने संन्यासी को नहीं कहता कि छोड़कर भागो कहीं। भागकर कहां जाना है? सिर्फ चित्त का नया सरगम बिठाओ; सिर्फ चित्त का नंया संगीत बनाओ। सिर्फ चित्त को परमात्मा की तरफ मोड़ने की कला सीखो। सिर्फ उस तरफ बहो। रहो कहीं भी, बहो उस तरफ। जीओ कहीं भी, याद उसकी रहे। उठो-बैठो कहीं भी, श्वास उसके साथ जुड़ी रहे; फिर सब हो जाएगा। ___ स्थविर की यह करुणासिक्त वाणी, यह शून्यसिक्त संदेश, उस युवक की । श्वास-श्वास में समा गया। समा ही जाएगा। ऐसी क्षमा कौन न पी जाएगा! शायद डरा होगा देखकर स्थविर को पहले तो–कि अब शायद कुछ और दुर्वचन सुनने पड़ेंगे! अब मरते वक्त ये और दुख देने आ गए! अब शायद निंदा होगी। लेकिन निंदा नहीं हुई। याद दिलायी गयी ध्यानों की। कोई निषेधात्मक बात नहीं कही गयी; विधेय की तरफ पुकारा गया। फिर सामने खड़े इस बुद्धपुरुष को देखकर, इस शाति, इस करुणा को देखकर, इस शून्य से उठता हुआ जो प्रसाद है, उसको अनुभव करके वह संवेग को उत्पन्न हो गया। संवेग का अर्थ होता है : वह वहां नहीं रहा सिपाहियों के बीच घिरा हआ, संवेग को उपलब्ध हो गया, मतलब वह वहां पहुंच गया, जहां पंद्रह-बीस साल पहले भिक्षु था; महास्थविर का शिष्य था; महाकाश्यप के चरणों में बैठता था। बीच के दिन मिट गए; जैसे पुछ गए; जैसे हुए ही नहीं; जैसे किसी कहानी में पढ़े थे; किसी और की जिंदगी का हिस्सा थे; अपनी जिंदगी का हिस्सा ही न थे। ___ वह संवेग को उत्पन्न हुआ; रोमांचित हुआ। कहां अभी चिंताओं से भरा था, कहां अब उमंग से भर गया! वही ऊर्जा जो चिंता बन रही थी, उमंग बन गयी। रो-रोआं रोमांचित हो गया। ध्यान का शब्द फिर जगा गया। उसके प्राणों में ध्यान की स्मृति फिर ताजी और हरी हो गयी। वह तत्क्षण ऐसे ध्यान को उपलब्ध हो गया, जैसे कोई स्वप्न से जागे। एक दुखस्वप्न देखा था—किसी स्त्री के मोह में पड़ने का, फिर चोरी करने का, फिर पकड़े जाने का एक दुखस्वप्न देखा था। आंख खुल गयी। सुबह हो गयी। जल्लाद उसे वधस्थल पर ले जाकर मारना चाहे, तो मार न सके। फिर तुम्हें याद दिला दूं। मूल कथा कहती है कि उन्होंने मारा, तलवारें उठायीं। 86
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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