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________________ एस धम्मो सनंतनो इस घटना के आघात में बड़े जागरूक हो गए थे। उस जागरूकता के क्षण को चूका नहीं जा सकता है। इसलिए बुद्ध ने बीच सड़क में खड़े होकर ये वचन कहे: यथापि मूले अनुपद्दवे दल्हे छिन्नोपि रुक्खो पुनरेव रूहति। एवम्पि तहानुसये अनूहते निब्बत्तति दुक्खमिदं पुनप्पुनं ।। 'जैसे दृढ़ मूल के बिलकुल नष्ट न हो जाने से कटा हुआ वृक्ष फिर भी वृद्धि को प्राप्त होता है, वैसे ही तृष्णा और अनुशय के समूल नष्ट न होने से यह दुख-चक्र बार-बार प्रवर्तित होता है।' तो बुद्ध ने कहा कि भिक्षुओ, पत्ते और शाखाएं मत काटते रहना; जड़-मूल से तृष्णा को काटना है। अगर जड़ बच गयी-मूल जड़ बच गयी-तो तुम पूरे वृक्ष को भी काट दो, फिर नए अंकुर निकल आते हैं। ऐसा ही इस बेचारी सुअरी को हुआ। मुर्गी थी। अनजाने कुछ शाखाएं गिर गयीं। फिर राजकुमारी थी, तो संवेग की एक दशा में, भाव के एक प्रवाह में ध्यान फला। लेकिन तृष्णा जड़-मूल से नहीं गयी, तो स्वर्ग तक पहुंचकर वापस लौट आयी। फिर अंकुर आ गए। फिर तृष्णा ने पकड़ लिया! सात अनुशय कहे हैं बुद्ध ने काम; भवराग...। भवराग का अर्थ होता है : मैं जीऊं; मैं सदा जीऊं; मैं बना रहूं, मैं कभी मिटूं नहीं। प्रतिहिंसा; मान; मिथ्यादृष्टि-जैसा है, उसको वैसा न देखना; जैसा है, उसको कुछ और करके, कुछ और बनाकर देखना; अपने मन के अनुकूल बनाकर देखना। संदेह और अविद्या-ये सात अनुशय हैं। ये सातों जड़ें हैं, जिन पर तृष्णा खड़ी है, जिन पर तृष्णा का वृक्ष बड़ा होता है। ये सातों अनुशय कट जाएं, तो तृष्णा कटती है! फिर उसमें कभी अंकुर नहीं आते। यस्स छत्तिंसति सोता मनापस्सवना भुसा। वाहा वहन्ति दुद्दिर्टि संकप्पा रागनिस्सिता।। 'जिसके छत्तीसों स्रोत संसार में प्रिय पदार्थों की तरफ बने रहते हैं, उसके रागपूर्ण संकल्प उसे दुर्दृष्टि की ओर बहा ले जाते हैं।' ___ और तुम अनंत रूपों में संसार की वस्तुओं की तरफ बह रहे हो। तुम्हारे सब द्वार संसार की तरफ खुले हैं, जो तुम्हें दुर्दृष्टि में बहा ले जाते हैं। ___ इधर एक सुंदर स्त्री दिखायी पड़ गयी और तुम बहे। यहां किसी की सुंदर कार दिखायी पड़ गयी-और तुम बहे। यहां किसी का बड़ा मकान दिखायी पड़ गया-और तुम बहे। यहां कोई सुंदर कपड़े पहनकर निकला है और तुम बहे। 30
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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