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________________ एस धम्मो सनंतनो बदला। चुपचाप बदला। जैसे सुबह हो जाती है, और पक्षी सोए थे, जाग जाते हैं। और वृक्ष जाग जाते हैं। ऐसे ही बुद्धों के पास बैठकर सोयी आत्माएं जागने लगती हैं। वही असली शासन है। . इसलिए बुद्धों का नाम है शास्ता; जिनके पास बैठकर शासन पैदा हो जाए। जो कहें भी न तुम से; इतना भी न कहें कि ऐसा करो, कि शराब छोड़ दो, कि जुआ मत खेलो। जिनके पास बैठकर जुआ छूट जाए, शराब छूट जाए। बैठकर ही छूटे, तो कुछ अर्थ की। कहने से छूटे, तो बात व्यर्थ हो गयी। बुद्ध शासन देते नहीं, उनके पास शासन का जन्म होता है। सहज स्फुरणा होती है। तो बुद्ध ने कहाः यह काश्यप बुद्ध के शासन में कपिल नामक एक महापंडित भिक्षु था। ___ महापंडित था। भिक्षु था। संन्यास धारण किया था। यह त्रिपिटकधर था। यह शास्त्रों का परमज्ञाता था। इसे तीनों पिटक याद थे; ज्ञानी था। __जैसे हिंदुओं के चार वेद, ऐसे बौद्धों के तीन पिटक। ज्ञानी था; महाज्ञानी था। तर्कनिष्ठ था। बड़ा बुद्धिमान था। बड़ा बौद्धिक था। लेकिन उतना ही अभिमानी था। अक्सर ऐसा हो जाता है : ज्ञान से अहंकार कटता नहीं, भर जाता है। ज्ञान से अहंकार और मजबूत होकर छाती पर बैठ जाता है। तो चूक हो गयी। दवा जहर हो गयी। औषधि शत्रु हो गयी। औषधि बीमारी बन गयी। ज्ञान का तो अर्थ ही यही है कि काट दे अहंकार को। अगर ज्ञान से तुम्हारे भीतर मैं की अकड़ बढ़ने लगे और ऐसा लगने लगेः मैं जानता; कौन मेरे जैसा जानता? कौन है जो मेरे मुकाबले है? मैं अद्वितीय, मैं बेजोड़! ऐसे भाव उठने लगें ज्ञान से, तो समझना : चूक हो गयी। जल्दी सम्हल जाना। नहीं तो किसी दिन अचिरवती नदी में सोने की देह होगी और मल-मूत्र से भरी आत्मा होगी। बड़ी दुर्गंध उठेगी। इसने अपने अभिमान में भगवान काश्यप के साथ धोखा किया। अक्सर ऐसा हो जाता है। महावीर के साथ गोशालक ने धोखा किया। गोशालक महावीर का शिष्य था, लेकिन महापंडित, बड़ा ज्ञानी! स्वभावतः, धीरे-धीरे उसे ऐसा लगने लगा कि महावीर क्या जानते हैं! मैं भी जानता हूं सब। जो ये जानते हैं, वह मैं जानता हूं। तो फिर मुझ में कमी क्या है? फिर मैं तीर्थंकर क्यों नहीं? तो फिर मैं अपना अलग ही पंथ निर्मित करूंगा। उसने अपना अलग पंथ निर्मित किया। खुद तो भटका और अनेकों को भटकाया। ऐसा बुद्ध का शिष्य था और उनका चचेरा भाई देवदत्त। राजघर से था। बुद्ध का चचेरा भाई था। उतने ही कुलीन घर से था। बचपन से दोनों साथ खेले थे। सुशिक्षित था, सुसंस्कृत था। आखिर यह अकड़ आनी शुरू हुई उसे कि फिर मैं बुद्ध क्यों न हो जाऊं? बुद्ध को छोड़कर अलग हो गया। बुद्ध को मार डालने की चेष्टाएं की—कि बुद्ध मिट जाएं तो मैं अकेला बुद्ध। फिर मेरी कोई भी प्रतिस्पर्धा न कर सकेगा। 20
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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