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________________ भीतर डूबो गया। अब कल की कल देखेंगे। जीसस ने कहा है अपने शिष्यों से: देखते हो खेत में खिले लिली के फूलों को ! सम्राट सोलोमन भी अपने परम सौंदर्य में इतना सुंदर न था । और ये लिली के फूल न तो मेहनत करते, और न कल की चिंता करते । यह वचन ठीक वैसा ही है, जैसा मलूक का वचन है : अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम। दास मलूका कह गए, सब के दाता राम ।। तुमने कभी किसी गरीब में ऐसा दास मलूका देखा? अगर नहीं देखा, तो तुमने अभी गरीब नहीं देखा । फिर तुम्हें कोई न कोई छोटा-मोटा मध्यवर्गीय अमीर ही मिला होगा । वस्तुतः गरीब आदमी, जिसके पास कुछ भी नहीं है, स्वभावतः निश्चित होगा । न बीते की फिकर, न आने की फिकर । आज काफी है। उसमें तुम एक तरह के फूल को खिलता देखोगे – निश्चितता का फूल। उसकी अपरिग्रहता में, उसके पास कुछ न होने में, उसकी मस्ती का राज है । जैसे-जैसे अमीर अमीर होता जाता है, वैसे-वैसे स्वभावतः जाल बढ़ते हैं, समस्याएं बढ़ती हैं। इतना सम्हालूं, इतना करूं। यह कैसा होगा ? वह कैसे होगा ? इतना टैक्स बढ़ा जाता है ! सरकार न ले जाए ! चोर न ले जाएं! कम्युनिज्म न आ जाए ! न मालूम कितने-कितने चिंताओं के जाल खड़े होते हैं। और इन सब के बीच अकेला फंसा होता है। जैसे मकड़ी अपने ही बुने जाले में फंस जाए। यही तो बुद्ध ने कहा : जैसे मकड़ी अपने ही बुने जाले में फंस जाए, ऐसा अमीर फंस जाता है। तुम्हें एक बड़ा सत्य दिखलायी पड़ा है। तुम इसका उपयोग करो। तुम्हें दिखलायी पड़ा है कि 'न मैं दुख सह पाता हूं, न सुख।' इस बात को गहरे उतरने दो। 'हर बात से भयभीत हूं।' यहां हर बात व्यर्थ है, भयभीत होने में कुछ आश्चर्यजनक नहीं, कुछ आश्चर्य नहीं। यहां हर चीज मृत्यु से भरी है। समझो इस भय को । यहां हर आदमी कंप रहा है। इस कंपन को देखो। लेकिन इस कंपन में अगर तुम्हें यह बात समझ में आ जाए कि कंपन स्वाभाविक है, तो भय विसर्जित हो जाएगा। भय इसलिए हो रहा है कि तुम नहीं चाहते कि कंपन हो । भय इसलिए हो रहा है कि मौत आ रही है पास, नहीं आनी चाहिए। पैर डगमगाने लगे, मैं बूढ़ा होने लगा, और यह नहीं होना चाहिए। नहीं होना चाहिए - इस आकांक्षा से भय हो रहा है। अगर मृत्यु को स्वीकार कर लो...। और न करोगे स्वीकार, तो भी करोगे क्या ? मौत होनी ही है। जो होना है— होना ही है । तुम्हारे बचने से कुछ न होगा, 259
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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