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________________ धर्म का सार-बांटना जरूरत नहीं थी इसको, क्योंकि इसके पास अपना खुद बहुत है, वह भी पड़ा रह जाने वाला है, उसका भी कोई मालिक नहीं है। भाई के बेटे को मारकर इसका प्रेम बिलकुल सूख गया। इसीलिए यह निःसंतान रह गया। इसके बांझ रह जाने का यही मूल कारण है। इस समय मरकर वह महा रौरव नरक में उत्पन्न हुआ है। क्योंकि पुराना किया हुआ पुण्य समाप्त हो गया है और नया पुण्य उसने किया नहीं। ध्यान रखना : पुण्य भी समाप्त हो जाते हैं! पुण्यों की भी सीमा है। कमाते ही रहोगे, तो ही साथ रहेंगे। बहती ही रहे पुण्य की धारा, तो ही ठीक है। रुकी-कि गयी। ऐसा ही समझो कि जैसे तुम आग जलाते हो। ईंधन झोंकते रहो, तो आग जलती रहेगी, जलती रहेगी। ईंधन बंद हो गया, थोड़ी-बहुत देर जलेगी पुराने ईंधन के कारण, फिर आखिर चुक जाएगी। ___हर चीज चुक जाती है। पुण्य भी चुक जाते हैं। सिर्फ एक चीज है जो नहीं चुकती, वह पुण्य और पाप के भी अतीत है, उसको साक्षी भाव कहा है। वही भर नहीं चुकता। वही भर शाश्वत है, बाकी सब चीजें क्षणभंगुर हैं। पुण्य भी दूर तक साथ जाता है। लेकिन सदा साथ नहीं जा सकता। कमायी है एक तरह की, उसका लाभ ले लोगे, समाप्त हो जाएगी। ___इसलिए जब अवसर मिले शुभ का, तो करते रहना। ऐसा मत सोचना कि बहुत कर चुके शुभ, अब क्या करना! जिस दिन तुमने ऐसा सोचा कि बहुत कर चुके शुभ, अब क्या करना है ! उसी दिन से शुभ मरने लगेगा, उसी दिन से तुम्हारी पूंजी चुकने लगेगी। जैसे आदमी को कमाते रहना चाहिए, तो ही पूंजी आती है, ऐसे ही पुण्य करते रहना चाहिए, तो ही पुण्य में धारा बहती रहती है, सातत्य रहता है। राजा ने भगवान की बात सुनकर कहाः भंते! उसने बड़ा बुरा कर्म किया, जो आप जैसे बुद्ध के पास ही विहार में रहते हुए भी दान नहीं दिया, न धर्म-श्रवण किया। और अपनी इतनी संपत्ति को छोड़कर मर गया! . वह पुराने बुद्ध से जो एक दफे भूल हो गयी, उस कारण वह इन बुद्ध के पास आया भी नहीं होगा! मेरे देखने में ऐसा ही है। वह पछतावा इतना गहरा हो गया है कि एक दफा गया था-ऐसा कोई चेतन उसके मन में नहीं है, लेकिन गहरे अचेतन में संस्कार है-एक दफा गया था बुद्ध के पास, तब भूल हो गयी थी; दान कर बैठा था। अब ऐसी.जगह फटकना भी नहीं। अब ऐसी जगह जाना भी नहीं। अब ऐसे लोगों से बचना। ये खतरनाक लोग हैं। इनके पास आदमी भावाविष्ट हो जाता है और कुछ का कुछ कर बैठता है! होश गंवा बैठता है! प्रेम में पड़ जाता है इनके। इनके साथ मदहोश हो जाता है। ऐसी जगह जाना ही नहीं। ऐसा मजबूत कर लिया होगा। ऐसी मजबूत धारा बन गयी होगी। 231
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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