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________________ दर्पण बनो है ! वे मेरी पूरी बात भी नहीं सुन पाते हैं। रोज मैं देखता हूं: दो-चार ऐसे लोग आ जाते हैं। बीच बात से उठ जाते हैं। उनकी पकड़ में कुछ नहीं आता। उनकी समझ में कुछ नहीं आता। उन पर कितनी ही दया करो, कुछ भी परिणाम नहीं हो सकता। उनके कान बहरे हैं और आंखें बिलकुल अंधी हैं। वे ऐसे ही आ गए हैं संयोगवशात। रास्ते से निकलते होंगे; देखा और लोग जा रहे हैं; साथ हो लिए। या कोई मित्र आता होगा; उसने कहा, कभी तुम भी चलो। उन्होंने कहा : ठीक है; आज छुट्टी भी है दफ्तर की, चलते हैं। चले चलते हैं। कहीं किताब हाथ लग गयी होगी। कुछ पढ़ा होगा। सोचा होगाः चलें, एक बार चलकर देखें कि मामला क्या है। ऐसे लोग टिक नहीं पाते। ऐसे लोग आते हैं, चले जाते हैं। टिकते तो वही हैं, जो पुकारे गए हैं। टिकते तो वही हैं, जो चुने गए हैं। तुम्हें तो पता देर में चलता है कि तुमने मुझे चुन लिया; मुझे पता पहले चलता है कि तुम चुन लिए गए हो। इसलिए यह तो कहो ही मत कि 'मुझे अपना मान न मान तू, तुझे मैंने अपना बना लिया।' ____ 'कई तेजगाम भटक गए, कई बर्करौ हुए लापता।' यह सच है। क्योंकि जिंदगी सिर्फ तेज चलने से ही हल नहीं हो जाती। कई बार धीमे चलेने से पहुंचना होता है। तेज चलने से ही कोई पहुंच जाता है, ऐसा नहीं है। - एक बहुत पुरानी बौद्ध कथा है। दो भिक्षुओं ने नदी पार की। एक वृद्ध भिक्षु; और स्वभावतः वृद्ध है, इसलिए बड़े शास्त्रों का बोझ है। शास्त्र लिए हुए है। और एक युवा भिक्षु। दोनों नदी के तट पर उतरे और उन्होंने, जो मल्लाह उन्हें नदी के पार ले आया था, उससे पूछा कि सांझ होने के करीब है और सूरज ढलने को होने लगा, और हम पहुंचना चाहते हैं बस्ती रात हो जाने के पहले-पुराने दिनों की कहानी-रात होते ही, सूरज ढलते ही, द्वार-दरवाजा बंद हो जाएगा नगर का। फिर रातभर हमें जंगल में ही रहना पड़ेगा। और खतरनाक है। जंगली जानवर हैं। तो कोई सूक्ष्म रास्ता तुझे पता हो, करीब का रास्ता तुझे पता हो; और कितने जल्दी हम पहुंच जाएं, ऐसा मार्ग बता दे। __उस मांझी ने बड़ी अजीब बात कही। अदभुत आदमी रहा होगा। कथाएं कहती हैं, पहुंचा हुआ अर्हत था। उसने कहा : ऐसा है, अगर तेज गए, तो भटक जाओगे। अगर धीरे गए, तो पहंच जाओगे। यह बात सुनकर तो दोनों संन्यासियों ने कहा, यह कोई पागल मालम होता है। यह तो बिलकुल गणित के बाहर की बात हो गयी; गणित से उलटी हो गयी। तेज जाओगे, भटक जाओगे! धीमे गए, पहुंच जाओगे! ऐसे आदमी की बात कौन सुने। उन्होंने कहा, समय खराब मत करो इसके साथ। यह आदमी होश में नहीं है। वे तो भागे। क्योंकि सूरज ढल रहा है, और गांव की दीवाल दूर दिखायी पड़ती
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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