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________________ बोध से मार पर विजय भिक्षु उनको गुरु मानते थे। हालांकि उनको कुछ मिला नहीं था, मगर उनका त्याग उनको प्रभावित करता था। दुनिया में बड़े अजीब लोग हैं! उनको कौन सी चीज प्रभावित करती है. यह भी बड़ी सोचने जैसी बात है! यह आदमी मरा जा रहा है। यह आत्महत्या में संलग्न है। और वे प्रभावित हो रहे हैं! दुनिया में बड़े दुष्ट लोग हैं। __ तुम खयाल रखना ः जब तुम उपवास करो और कोई तुम्हारी आकर प्रशंसा करे, समझ लेना कि यह आदमी क्या चाहता है! यह तुम्हें भूखा मरवाना चाहता है। तुम सिर के बल खड़े हो जाओ, और यह आदमी कहे : वाह! आप बड़े महातपस्वी हैं। इससे सावधान रहना। यह तुम्हारी जिंदगी खराब कर देगा। यह चाहता है : तुम सिर के बल खड़े रहो! दुनिया में लोग दूसरों को दुखी देख-देखकर मजा लेते हैं। इसलिए मुनियों, साधुओं और तपस्वियों के पास दुष्ट प्रकृति के लोग इकट्ठे हो जाते हैं। वे कहते हैं : महाराज! गजब कर रहे हैं! कांटों पर लेटे हैं! भीड़ लगा लेते हैं। धूप में खड़े हैं! भयंकर गर्मी पड़ रही है, और गुरुदेव! आप धूनी रमाए बैठे हैं! आग जलाकर ताप रहे हैं! गजब! ये जो लोग हैं, इनके लिए मनोविज्ञान में एक खास शब्द है : मेसोचिस्ट। ये परदुखवादी हैं। यह दूसरा सता रहा है अपने को, इसमें इनको मजा आता है! ये वैसे ही लोग हैं, जैसे कोई आदमी अपने शरीर में घाव कर ले और छुरी से घाव को कुरेदता रहे, और ये कहें: वाह! आप बड़ी महासाधना कर रहे हैं! आपका जुलूस निकालेंगे, शोभा-यात्रा निकालेंगे। पर्युषण में आपने दस दिन व्रत किए, उपवास किए, शोभा-यात्रा निकालेंगे। भूखे रहे आप महीने भर, बड़ा उपवास किया-आप महातपस्वी हैं! तुम दुख दो अपने को, और दूसरे लोग तुम्हें आदर देते हैं। जरूर इसमें कुछ राज है। जब वे तुम्हें आदर देते हैं, तो तुम अपने को और दुख देने को राजी हो जाते हो, क्योंकि अहंकार की तृप्ति होती है। और उनकी भी जरूर कोई तृप्ति हो रही है। लोग जासूसी किताबें पढ़ते हैं। क्यों? लोग जाकर हत्याओं की फिल्म देखते हैं; डकैतियों की फिल्म देखते हैं; क्यों? तुमने कभी पूछा? रास्ते पर दो आदमी लड़ रहे हों, तत्काल भीड़ खड़ी हो जाती है। तुम, तुम्हारी मां बीमार है, दवा लेने जा रहे थे। साइकिल टिकाकर किनारे, तुम भी खड़े हो गए-कि अब मां समझे...। मां की दवा में क्या है! घंटे दो घंटे की देर भी हो गयी-चलेगा। मगर यह तमाशा छोड़ा नहीं जा सकता। और दो आदमी बिलकुल लड़ने-मारने को तैयार हैं। तुम्हारी भी उत्सुकता बढ़ती जाती है कि अब कुछ होता ही है! अब कुछ होने ही वाला है! और अगर संयोग से कुछ न हो, तो तुम बड़े उदास लौटते हो। 163
SR No.002388
Book TitleDhammapada 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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