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________________ एस धम्मो सनंतनो व्यर्थ होने लगते हैं, तब आदमी भगवान की स्मृति करता है। तब सोचता है, शायद! __पर खयाल रखना, जिसने अंत में भगवान को मौका दिया है उसके भीतर शायद तो मौजूद रहेगा ही। अंत में मौका देने का मतलब ही है कि तुम्हारा भगवत्ता में विश्वास नहीं है। ये वैशाली के लोग, दुर्भिक्ष फैला होगा, महामारी फैली होगी, सब उपाय किए होंगे, चिकित्सा-व्यवस्था की होगी, लेकिन कुछ भी रास्ता न मिला, लोग कुत्तों की मौत मर रहे थे...यह कुत्तों की मौत शब्द मुझे बहुत ठीक लगा। गुरजिएफ निरंतर अपने शिष्यों से कहा करता था कि जिस व्यक्ति ने ध्यान नहीं किया, वह कुत्ते की मौत मरेगा। किसी ने उससे पूछा, कुत्ते की मौत का क्या अर्थ होता है ? तो गुरजिएफ ने कहा, कुत्ते की मौत का अर्थ यह होता है कि व्यर्थ जीआ और व्यर्थ मरा। दुत्कारें खायीं, जगह-जगह से भगाया गया, जहां गया वहीं दुत्कारा गया, रास्ते पर पड़ी जूठन से जिंदगी गुजारी, कूड़े-करकट पर बैठा और सोया, और ऐसे ही आया और ऐसे ही व्यर्थ चला गया, न जिंदगी में कुछ पाया न मौत में कुछ दर्शन हुआ-कुत्ते की मौत! लेकिन, हमें लगता है कि कभी-कभी कोई कुत्ते की मौत मरता है। बात उलटी है, कभी-कभी कोई मरता है जिसकी कुत्ते की मौत नहीं होती। अधिक लोग कुत्ते की मौत ही मरते हैं। हजार में एकाध मरता है जिसकी मौत को तुम कहोगे कुत्ते की मौत नहीं है। जो जीआ, जिसने जाना, जिसने जागकर अनुभव किया, जिसने जीवन को पहचाना, जिसने जीवन की किरण पकड़ी और जीवन के स्रोत की तरफ आंखें उठायीं, जो ध्यानस्थ हुआ, वही कुत्ते की मौत नहीं मरता। फिर हम बड़े बेचैन हो जाते हैं—महामारी फैल जाए, लोग मरने लगें, तो हम बड़े बेचैन हो जाते हैं। और एक बात पर हम कभी ध्यान ही नहीं देते कि सभी को मरना है-महामारी फैले कि न फैले। इस जगत में सौ प्रतिशत लोग मरते हैं। खयाल किया? ऐसा नहीं कि निन्यानबे प्रतिशत लोग मरते हैं, कि अट्ठानबे प्रतिशत लोग मरते हैं, कि अमरीका में कम मरते हैं और भारत में ज्यादा मरते हैं। यहां सौ प्रतिशत लोग मरते हैं—जितने बच्चे पैदा होते हैं उतने ही आदमी यहां मरते हैं। महामारी तो फैली ही हुई है। महामारी का और क्या अर्थ होता है? जहां बचने का किसी का भी कोई उपाय नहीं। जहां कोई औषधि काम न आएगी। साधारण बीमारी को हम कहते हैं-जहां औषधि काम आ जाए, तो उसको कहते हैं बीमारी, रोग। महामारी कहते हैं जहां कोई औषधि काम न आए। जहां हमारे सब उपाय टूट जाएं और मृत्यु अंततः जीते। महामारी तो फैली हुई है, सदा से फैली हुई है। इस पृथ्वी पर हम मरघट में ही खड़े हैं। यहां मरने के अतिरिक्त और कुछ होने वाला नहीं है। देर-अबेर घटना घटेगी। थोड़े समय का अंतर होगा। वैशाली के लोगों ने यह कभी न देखा था कि सभी लोग मरते हैं, सभी को मरना
SR No.002387
Book TitleDhammapada 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages362
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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