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________________ मन की मृत्यु का नाम मौन कहां हो, कैसे हो। यह एक बात शिष्य के परीक्षा के लिए, उसके अंतर्परीक्षा के लिए कि वह जिसके सामने इस तरह नग्न हो सके, वही सदगुरु उसका। उसने उसी को गुरु-भाव से स्वीकार किया है। _ किसी के चरणों में सिर रखने से कुछ भी नहीं होता। और इधर इस देश में तो चरणों में सिर रखने की आदत इतनी पड़ गयी है कि औपचारिक रूप से लोग रख देते हैं। लेकिन सिर चरणों में रखने का यह मौलिक अर्थ है कि यहां अब मैं जैसा हूं वैसा ही प्रगट करूंगा। अब जरा भी लगाव-छिपाव नहीं, अब जरा भी तोड़-मरोड़ नहीं, अब जरा भी तर्क का सहारा न लूंगा, झूठ का सहारा न लूंगा। यह तो गुरु तुमने चुना किसी को, इसकी तुम्हें खबर मिलेगी, इस भाव से। और सच में ही तुमने कोई सदगुरु पा लिया या नहीं, यह इस बात से पता चलेगा कि तुम जब नग्न अपने सारे झूठों को भी स्वीकार कर लो, तब भी निंदा न हो; तो समझो कि तुमने सदगुरु पाया। क्योंकि तुमने चुन लिया गुरु, इससे ही थोड़े सदगुरु मिल जाता है। तुम तो गलत गुरु भी चुन सकते हो। तुम तो किसी पाखंडी को भी गुरु चुन सकते हो, किसी अज्ञानी को भी गुरु चुन सकते हो। तुम्हारे पास कसौटी क्या है? तुम कैसे कसोगे कि तुमने जिसे पा लिया है, वह सदगुरु है। कैसे मापोगे? कैसे आंकोगे? क्या उपाय है? यह है उपाय, कि तुम जब अपनी सारी नग्नता को भी उसके सामने रख दो, तब भी उसके मन में तुम्हारे प्रति कोई निंदा का भाव न हो। सिर्फ करुणा हो। वह तुम्हें समझे, समझाए, लेकिन निंदा का कोई स्वर न हो। जहां निंदा का स्वर है, वहां समझ लेना कि जिस आदमी के सामने तुम झुके हो, वह तुमसे बेहतर नहीं है। यह बात बहुत काम की है। तुम्हारे सौ महात्माओं में से निन्यानबे महात्मा निंदा से भरे हुए लोग हैं। निंदा तभी तक रहती है भीतर, जब तक तुम भी उन्हीं चीजों से उलझे हो जिनमें लोग उलझे हैं। ___मेरे पास कोई आता है, वह कहता है कि मैंने संन्यास तो ले लिया, लेकिन बड़ी अड़चन है, मुझे शराब पीने की आदत है। यह आदमी अगर तुम्हारे महात्माओं के पास जाए, तो सौ में से निन्यानबे एकदम आग-बबूला हो उठेंगे कि शराब! पाप है, नर्क में सड़ोगे। नर्क के कड़ाहों में चढ़ाए जाओगे। शराब! शराब तो बहुत दूर की बात, चाय नहीं पीने देगा तुम्हारा महात्मा। चाय पी ली कि पाप हो गया, महापाप हो गया। निंदा का पहाड़ तुम पर टूट पड़ेगा। इसी निंदा के पहाड़ के कारण तुम गुरु के सामने भी सच्चे नहीं हो पाते। खयाल ले लेना, दोनों बातें मिलेंगी तभी कुछ हो सकता है। तुम सच्चे कैसे हो पाओगे? जिसके सामने जरा सी बात और निंदा का पहाड़ टूट पड़ता हो, तो तुम सच्चे कैसे हो पाओगे? तुम कह कैसे पाओगे कि तुमने क्या भूलें कीं, क्या चूकें की हैं? सदगुरु समझेगा। वह तुम्हारी दशा समझेगा, क्योंकि कभी वह भी तुम्हारी दशा में रह चुका है। और जानता है कि इसके पार हुआ जा सकता है। और पार होने का
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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