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________________ अकेला होना नियति है इसलिए जो भी चीज बेचनी हो, स्त्री से जोड़ दो। किसी तरह स्त्री से जोड़ दो। स्त्री बिकती है। ___यह अपमानजनक है बात। स्त्रियों को इसका विरोध भी करना चाहिए। ये विज्ञापन अशोभनीय हैं। ये विज्ञापन स्त्री को बाजार में बिकने वाली चीज बता रहे हैं। ये विज्ञापन स्त्री-जाति का सम्मान नहीं, अपमान है। लेकिन गहरे में, सारी वासनाओं के गहरे में कामवासना है। कामवासना मौलिक वासना है, शेष वासनाएं अर्जित, सीखी हुई वासनाएं हैं। कहीं धन बहुत ज्यादा प्रभावशाली होता है-कहीं धन, कहीं पद, लेकिन कामवासना सभी संस्कृतियों में, सभी सभ्यताओं में, सभी कालों में प्रभावशाली होती है। तो बुद्ध उस युवक को पहली बात कहते हैं, 'जब तक पुरुष की स्त्री के प्रति कामवासना अणुमात्र भी शेष रहती है, तब तक वह वैसे ही बंधा रहता है, जैसा दूध पीने वाला बछड़ा अपनी माता से बंधा रहता है।' ___ और भी बात खयाल रख लेना। वह युवक सात दिन बाद मरने को है। जीवन में जो सबसे बड़ा द्वंद्व है, वह कामवासना और मृत्यु का है। इसलिए बुद्ध का यह सूत्र बड़ा अर्थपूर्ण है; बड़ा अर्थगर्भित है। खयाल करो, जन्म होता है कामवासना से। तो जन्म तो जुड़ा है कामवासना से। और अब मृत्यु हो रही है, दूसरे छोर पर पहुंच गए हैं। तो काम और मृत्यु विपरीत हैं। अगर तुम मरते समय भी कामवासना से भरे रहे तो तुम मृत्यु को तो देख ही न पाओगे, नए जन्म का आयोजन कर लोगे, क्योंकि कामवासना नया जन्म लाती है। मरते वक्त भी आदमी अगर कामवासना से भरा रहा, तो मरते वक्त भी उसकी प्रगाढ़ आकांक्षा यही है कि जल्दी से जन्म ले लूं, जल्दी से जीवित हो जाऊं, जो-जो नहीं कर पाया फिर कर लूं। और इस तरह बार-बार जन्म होता रहेगा, जब तक जन्म की आकांक्षा नहीं मिट जाती। और जन्म की आकांक्षा तभी मिटेगी जब कामवासना. अणुमात्र भी न रह जाए। फिर तुम मृत्यु को सीधा देख पाओगे। फिर तुम नए जन्म के बीज न बोओगे। फिर ही आवागमन से मुक्ति संभव है। ___ 'शरद ऋतु के कुमुद को जिस तरह मनुष्य हाथ से सहज काट देता है, उसी तरह आत्मस्नेह को काट डाल। सुगत बुद्ध द्वारा उपदिष्ट निर्वाण के शांतिमार्ग को बढ़ाता जा।' उच्छिद सिनेहमत्तनो कुमुदं सारदिकं व पाणिना। संति मग्गमेव बूहय निब्बानं सुगतेन देसितं।। जैसे शरद ऋतु का कमल होता है—सुंदर, कोमल-लेकिन एक झटके में हाथ से टूट जाता है। उसकी कोई मजबूती नहीं होती। दिखता बहुत सुंदर है, लेकिन 267
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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