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________________ अकेला होना नियति है हिलाया, मैंने कहा, कर क्या रहे हो? मरते वक्त सब खराब किए ले रहे हो? यह राम-राम! उन्होंने कहा, पता नहीं अब हो ही; कौन जाने, अब इस वक्त तो कर ही लूं! कौन जाने! मगर मैंने कहा, यह बेकार होगा। तुम अभी भी यह जान रहे हो कि है तो नहीं, मगर शायद! शायद से जो बात शुरू होती है, उस पर कोई दांव थोड़े ही लगाता है। निश्चय पर जो बात होती है, उस पर कोई दांव लगाता है। जो तुम्हारे प्राणों में गहरी प्रतिष्ठित हो जाती है, उस पर कोई दांव लगाता है। और जो दांव लगाता है, वही पाता है। अगर तुम चूकते हो तो याद रखना कि चूकते इसीलिए हो कि दांव नहीं लगाते हो। ___ मुझसे लोग आकर कहते हैं, हम ध्यान करते तो हैं लेकिन होता नहीं। ऐसा लगता है उनकी बात से जैसे कसूर ध्यान का है, कि लगाते तो हैं मगर लगता नहीं! जैसे ध्यान का ही कसूर होगा, उनका कसूर नहीं है। अगर नहीं लगता तो बात साफ है कि तुम लगाते नहीं। तुम्हारे जीवन में अभी यह बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं हो गयी है कि तुम सब दांव पर लगा दो। यह तुम्हारे जीवन में अभी जीवन-मरण का प्रश्न नहीं बना है। यह तुम्हारी मुमुक्षा नहीं है। शायद कुतूहल से तुम सोचते हो शायद होता हो तो देख लें, शायद कुछ शांति मिले, शायद कुछ आनंद मिले; मिल जाएगा तो फिर आगे बढ़ेंगे। लेकिन जो ऐसा सोचकर जाता है, उसे मिलता ही नहीं। - इस युवक में यह क्रांति इसलिए घट सकी, क्योंकि सात दिन बाद मौत खड़ी थी, अब गंवाने को भी कुछ नहीं बचा था, कमाने को भी कुछ नहीं बचा था। उसने सब दांव पर लगा दिया-सर्वस्व, सौ प्रतिशत, उबल गया होगा। उस उबलने से ही वाष्पीभूत हो जाता है कोई। उस युवक से ही भगवान ने ये गाथाएं कही थीं। ये गाथाएं समझने की कोशिश करना। समझना जैसे तुमसे ही कही हैं, क्योंकि मौत तो सभी की आनी है। और समझना कि ये जो योजनाएं इस युवक ने बनायीं, ये तुम भी बनाते हो। इस युवक को अपने से भिन्न मत मानना, यह तुम्हारा प्रतीक है। यही तुम कर रहे हो। बैलगाड़ियां न होंगी, बैलगाड़ियों में भरा सामान न होगा, तो गोदाम में भरा होगा। नदी-तट पर तुम न ठहरे होओगे, समय के तट पर तो ठहरे ही हो! शायद वे ही सुंदरियां तुम्हारे मन में न घूम रही होंगी जो उस युवक के मन में घूमती थीं, लेकिन कोई और सुंदरियां घूम रही होंगी। शायद वैसा ही महल तुम न बनाना चाहते होओ जैसा युवक बनाना चाहता था, लेकिन महल तो बनाना ही चाहते होओगे। इससे फर्क नहीं पड़ता। यह कहानी तुम्हारी कहानी है। इसे तुम ऐसे समझना जैसे तुम ही हो वह युवक। और मैं तुमसे कहता हूं कि तुम ही हो वह युवक। और यह भी मत सोचना कि तुम्हारी उम्र ज्यादा हो गयी, अब तुम युवक कैसे हो सकते हो। कुछ फर्क नहीं पड़ता, कामना 263
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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