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________________ एस धम्मो सनंतनो उसने पूछा कि कौन है और क्या चाहते हो? उस आदमी ने कहा, मैं बायजीद की तलाश में आया हूं; बायजीद भीतर है? सन्नाटा हो गया थोड़ी देर को, और बायजीद ने कहा, भाई, मैं खुद ही तीस साल से बायजीद की तलाश कर रहा हूं। और यही मैं पूछ रहा हूं-बड़ा चमत्कार है—कि बायजीद भीतर है? मुझे पता चल जाएगा तो तुम्हें खबर करूंगा। अभी तो मुझे ही पता नहीं चला कि बायजीद भीतर है या नहीं है। या भीतर कौन है! बायजीद ने ठीक कहा कि तीस साल से मैं खुद ही तलाश कर रहा हूं कि मैं कौन हूं। मुझे ही अभी पता नहीं तो तुमसे कैसे कहूं कि मैं कौन हूं! ____ दुनिया में तीन तरह के लोग हैं। एक, जिन्होंने तलाश ही नहीं की, जिन्होंने पूछा ही नहीं कि मैं कौन हूं। इनकी संख्या बड़ी है। इनकी ही भीड़-भाड़ है। इन्हें अपना पता नहीं है और ये चले चले जाते हैं। और ये लाख तरह की तमन्नाएं करते हैं और लाख तरह की तृष्णाएं करते हैं और इन्हें यह भी पता नहीं कि मैं कौन हूं। इनके जीवन की बुनियाद ही नहीं पड़ी है और ये जीवन का भवन बनाने में लगे रहते हैं। इनके भवन अगर गिर-गिर जाते हैं तो कुछ आश्चर्य नहीं। बुनियाद तो पहली बात से पड़ेगी—इस बात को तो मैं जान लूं कि मैं कौन हूं। इसको जान लेने से ही तय हो जाएगा कि मैं क्या खोजूं? मेरे स्वभाव के अनुकूल क्या है? क्या मुझे तृप्ति देगा? अभी तो मुझे यही पता नहीं कि मैं कौन हूं, तो जो मैं खोजूंगा, उससे मुझे तृप्ति मिलेगी या नहीं मिलेगी, इसका कैसे पता होगा? जो मैं खोजने चला हूं, उसका मुझसे कोई साज बैठेगा, संगीत बैठेगा मेरे साथ? ' __तो पहली तो बुनियादी बात है—मैं कौन हूं? अधिक लोग पूछते ही नहीं, सौ में निन्यानबे लोग पूछते ही नहीं कि मैं कौन हूं। इनसे पृथ्वी भरी है। दूसरे वे लोग हैं जिन्होंने पूछना शुरू किया कि मैं कौन हूं। दूसरे का नाम संन्यासी, पहले का नाम गृहस्थ। जिसने पूछा ही नहीं कि मैं कौन हूं, वह गृहस्थ, संसारी। जिसने पूछा कि मैं कौन हूं, वह संन्यस्त। और जिसने जान लिया कि मैं कौन हूं, वह बुद्ध, वह बुद्धत्व को उपलब्ध हो गया। ये तीन अवस्थाएं हैं—संसारी की अवस्था, संन्यासी की अवस्था, बुद्ध की अवस्था। बुद्ध की अवस्था तक पहुंचने के लिए संन्यास की प्रक्रिया से गुजरना जरूरी है। संसारी और बुद्ध को जोड़ता है संन्यास। संन्यास बीच का सेतु है। और बुद्ध बनने का यह अर्थ नहीं होता है कि तुम बुद्ध का अनुकरण करो। बुद्ध बनने का अर्थ होता है, आत्मानुसरण करो, आत्मानुसंधान में लगो। तुम बुद्ध जैसे बनने की कोशिश मत करना, नहीं तो बुद्ध कभी नहीं बन पाओगे। तुम तो स्वयं बनने की कोशिश करोगे तो बुद्ध बन पाओगे। इसे खयाल रखना, यह भूल बहुत हो जाती है। कभी सौभाग्य से कोई आदमी खोज में भी निकलता है तो यह एक झंझट खड़ी हो जाती है—वह नकल में पड़ 108
SR No.002386
Book TitleDhammapada 09
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages326
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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