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________________ आदमी अकेला है है। ये कहानियां एकदम कहानियां नहीं हैं, ये बड़ी महत्वपूर्ण हैं। ऐसी हमारी हालत है। किसी के प्राण तिजोड़ी में बंद हैं। तोते इत्यादि तो पुराने पड़ गए, तिजोड़ी! किसी के प्राण कुर्सी में बंद हैं। तोतों-मोतों का कौन भरोसा करे, उड़ जाएं, कुछ झंझट हो जाए, कुर्सी! और उस पर बैठे हैं, तो कोई ले जा भी नहीं सकता कुर्सी। और जोर से उसको पकड़े हैं। मगर कुर्सी तोड़ दो कि प्राण निकल जाते हैं। ऐसा लगता है, किसी के भी प्राण अपने भीतर नहीं हैं। __जिसके प्राण अपने भीतर हैं, वह निग्रंथ है। और जिनके प्राण अपने से बाहर हैं, वे सग्रंथ, उनकी गांठे हैं। तुम्हारी पत्नी मर जाए तो तुम मरने की सोचने लगते हो। तुम्हारा बेटा मर जाए तो तुम मरने की सोचने लगते हो। तुम्हारा दिवाला निकल जाए तो तुम मरने की सोचने लगते हो। छोटी-मोटी बात हो जाती है तो तुम मरने की सोचने लगते हो। तुम्हारे प्राण छोटी-छोटी चीजों में पड़े हैं। जहां कोई चीज गड़बड़ हुई बाहर कि तुमने तत्क्षण सोचा कि मर ही जाऊं। __ मनोवैज्ञानिक कहते हैं, ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है जिसने जीवन में कम से कम दस बार आत्महत्या का विचार न किया हो। और विचार करना करने के ही बराबर है। क्योंकि जो विचार में हो गया वह हो गया। तुमने बाहर किया या नहीं, यह बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। अदालत तुम्हें नहीं पकड़ सकती, लेकिन परमात्मा की अगर कोई अदालत है तो वहां तो तुम पकड़े गए। पुलिस तुम्हें नहीं पकड़ सकती, तुम अगर बैठे अपने मन में आत्महत्या का विचार कर रहे, तुम्हें कोई नहीं पकड़ सकता। जब तक कि तुम करने का उपाय न करो। लेकिन विचार करने में तुम परमात्मा के सामने तो दोषी हो ही गए। तुम अपने सामने तो दोषी हो ही गए। तुमने अपने जीवन की बड़ी सस्ती कीमत आंकी। दिवाला निकल गया, दुकान खराब हो गयी, तुम मरने की सोचने लगे! तो तुम्हारे जीवन का इतना ही मूल्य था, जितना तुम्हारी दुकान का मूल्य था! तो तुमने जीवन की बड़ी कम कीमत आंकी। तो तुम दुकान के लिए जीते थे! तो दुकान तुम्हारे लिए नहीं थी, तुम दुकान के लिए थे! यह तो परमात्मा का जो यह विराट दान है, इसका तुमने बहुत अपमान किया। इसको कहते हैं, ग्रंथि। निग्रंथ का अर्थ होता है, जिसकी कहीं कोई गांठ नहीं। तुमने देखा, महावीर नग्न हो गए। निग्रंथ का एक अर्थ नग्न होना भी होता है। क्योंकि जिसकी कोई गांठ ही नहीं है, उसके पास छिपाने को कुछ नहीं है, यह उसका मतलब होता है। गांठें ही हम छिपाते हैं। किसी को पता न चल जाए गांठ कहां है! नहीं तो लोग गांठ पर चोट करने लगेंगे। ___एक छोटे बच्चे को अस्पताल में लाया गया, उसके हाथ में चोट लग गयी थी। उसके हाथ पर पट्टी बांधने के पहले, डाक्टर जब उसके हाथ को ठीक करके पट्टी बांधने लगा तो उसने कहा, रुकिए, दूसरे हाथ पर पट्टी बांधिए। डाक्टर ने कहा, तू 75
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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