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________________ एस धम्मो सनंतनो लेकिन बुद्धपुरुष तुम्हें देखकर, तुम्हारा जो भाव है उसे देखकर-तुम जो चाहते हो उसे देखकर नहीं बोलते। बुद्धपुरुष, जिससे तुम्हारा कल्याण होगा। बड़ा फर्क है दोनों में। सत्यनारायण की कथा से तुम्हारा कल्याण होगा कि नहीं होगा, इससे कुछ लेना-देना नहीं है पंडित को। किसका हुआ है! कितने तो लोग सत्यनारायण की कथा सुनते रहे हैं। और सत्यनारायण की कथा में न सत्य है, और न नारायण हैं, कुछ भी नहीं है। बड़े मजे की कथा है! यह जो पंडित है, इसने लोगों को एक धारणा दे दी है कि सत्य तुम्हारे अनुकूल होता है। सत्य तुम्हारे अनुकूल हो ही नहीं सकता है! अगर तुम्हारे अनुकूल होता तो कभी का तुम्हें मिल गया होता। तुम सत्य के प्रतिकूल हो। इसीलिए तो सत्य मिला नहीं है। और जब सत्य आएगा तो छुरे की धार की तरह तुम्हें काटेगा। पीड़ा होगी। तो जो सुन रहे थे, वे भी बस सुनते से लगते थे। उनकी हजार धारणाएं थीं। वे अपनी धारणाओं के हिसाब से सुनने आए थे। उनके अनुकूल पड़ती है बात कि नहीं पड़ती। यह बुद्ध जो कहता है, इससे इनके सिद्धांत सिद्ध होते कि नहीं सिद्ध होते। अर्थात वहां कोई भी नहीं सुन रहा था। कोई शरीर से ही बस वहां मौजूद था, मन कहीं और था-दुकान में, बाजार में, हजार काम में। यहां भी मैं देखता हूं, कुछ मित्र आ जाते हैं, जम्हाई ले रहे हैं, कोई झपकी भी खा जाता है। मैं कभी-कभी चकित होता हूं, आते क्यों हैं? कोई बीच से उठ जाता है। कभी-कभी हैरानी होती है कि इतनी तकलीफ क्यों की? इतनी दूर अकारण आए क्यों? लेकिन कारण है। लोगों की पूरी जिंदगी ऐसे ही जम्हाई लेते बीत रही है। उसी तरह की जिंदगी को वे लेकर यहां आते हैं, नयी जिंदगी लाएं भी कहां से! ऐसे ही सोते-सोते, झपकी खाते-खाते जिंदगी जा रही है। उसी जिंदगी में वे यहां भी सुनने आते हैं। वे नयी जिंदगी लाएं भी कहां से! कोई काम कभी जिंदगी में पूरा नहीं किया है, सब अधूरा छूटता रहा है, बीच में यहां से भी उठ जाते हैं, पूरी बात सुनने का बल कहां! इतनी देर थिर होकर बैठना भी मुश्किल है। डेढ़ घंटा भारी लगता है। हजार तरह की अड़चनें आने लगती हैं। हजार तरह के खयाल आने लगते हैं कि बाजार ही चले गए होते, इतनी देर में इतना कमा लिया होता, फलां आदमी से मिल लिए होते, वकील से मिल आए होते, अदालत में परसों मुकदमा है, ऐसा है, वैसा है; हजार बात भीतर उठती रहती है। लेकिन कुछ आश्चर्य की बात नहीं है, यही तो चौबीस घंटे उनके भीतर चल रहा है। यहां अचानक आकर वे इसे एकदम छोड़ भी नहीं दे सकते हैं। आनंद ने यह दशा देखी। बुद्ध के भिक्षु आनंद ने यह दशा देखी कि पहले तो इन लोगों ने तीन बार प्रार्थना की, भगवान टालते रहे, टालते रहे, फिर बोले। अब इनमें से कोई सुन नहीं रहा है। आनंद को बड़ी हैरानी हुई, उसने कहा, भगवान, आप किससे बोल रहे हैं? 346
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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