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________________ शब्दों की सीमा, आंसू असीम में कुछ कमी नहीं होती, समाज की गरिमा बढ़ती है। लेकिन अगर बीस करोड़ आदमी नग्न खड़े हो जाएं, तो समाज ही खो जाएगा, गरिमा की तो बात ही छोड़ दो। इसलिए हिंदू और यहूदियों की पकड़ ज्यादा साफ है। ज्यादा व्यावहारिक है कि संन्यास ऐसा होना चाहिए जो जीवन की सहजता में फलित हो । जीवन के कोई अतिरिक्त ढांचे उसके लिए बनाने न पड़ें। आदमी घर में, दुकान पर बैठे-बैठे, काम करते-करते धीरे-धीरे संन्यस्त हो जाए। मरने की घड़ी आते-आते इस स्थिति में आ जाए कि जीवन को सरलता से छोड़ दे । भविष्य में भी जैन और बौद्ध परंपरा का कोई बहुत बड़ा भविष्य नहीं है । भविष्य भी बौद्ध और जैन परंपरा को पाल नहीं सकेगा, सम्हाल नहीं सकेगा। यहूदी और हिंदू परंपरा भविष्य में भी सम्हाली जा सकती है। किसी भी स्थिति में सम्हाली जा सकती है। लेकिन फिर भी मैं यह कहूंगा कि कुछ लोग सदा ही आनंदित होंगे सब छोड़कर। जो सब छोड़कर आनंदित हों, उनको भी मौका होना चाहिए, लेकिन यह शिक्षण बहुत गहरा नहीं होना चाहिए कि छोड़े बिना कोई परमात्मा को नहीं पहुंचता । क्योंकि इस कारण बड़ा उपद्रव होता है। जिनको छोड़कर कोई आनंद नहीं उपलब्ध होता, वे भी परमात्मा को पाने के लोभ में छोड़ देते हैं। - सुस्त, तुम देखो, महावीर की प्रतिमा है, कैसी प्रफुल्लित ! कैसी स्वस्थ ! कैसी शांत ! जैन मुनि की कतार लगाकर देखो, वह बिलकुल उदास, थका-मांदा, तुम जीवन-ऊर्जा क्षीण । ऐसा नहीं लगता कि वह किसी आनंद को उपलब्ध हुआ है, सौंदर्य को उपलब्ध हुआ है, किसी अहोभाव को उपलब्ध हुआ है । वह हो भी नहीं सकता अहोभाव को उपलब्ध । भोजन पूरा लेता नहीं... । अभी वैज्ञानिक खोज करते हैं कि अगर तुम एक दिन भी सुबह का नाश्ता न लो, तो उस दिन तुम्हारी बौद्धिक क्षमता पैंतीस प्रतिशत कम हो जाती है। अब इस सबके लिए वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि तुम्हारी बौद्धिक क्षमता तुम्हारे भोजन की पुष्टता पर निर्भर करती है । कितना पौष्टिक भोजन तुम लेते हो ! क्योंकि तुम्हारा मस्तिष्क आत्मा से नहीं चलता है, तुम्हारा मस्तिष्क शरीर का हिस्सा है। और शरीर से रस बहते रहें तो ही चलता है। अब अगर जैन मुनि की प्रतिभा क्षीण हो जाती है, दुर्बल हो जाती हैप्रतिभाशून्य हो जाता है, थोड़ा जड़ मालूम होने लगता है, कोई आश्चर्य नहीं है । होगा ही ऐसा, होना ही चाहिए। यह बिलकुल वैज्ञानिक है । उपवास, एक बार भोजन, वह भोजन भी बहुत पौष्टिक नहीं – क्योंकि पौष्टिक भोजन से घबड़ाहट है। पौष्टिक भोजन का अर्थ है, वह तुम्हारे भीतर वीर्य ऊर्जा को बनाएगा । और ब्रह्मचारी उससे घबड़ाता है, कि जैसे-जैसे वीर्य बनेगा, वैसे-वैसे कामना उठेगी। तो वह ऐसा भोजन लेता है जिससे वीर्य न बने। मगर यह कोई ब्रह्मचर्य हुआ ! यह 311
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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