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________________ एस धम्मो सनंतनो चर्चा का विषय बन गयी। अंततः भिक्षुओं ने भगवान से जिज्ञासा की। तो उन्होंने कहा, भूखे पेट धर्म नहीं। भूखे पेट धर्म समझा जा सकता नहीं। भिक्षुओ, भूख के समान और कोई रोग नहीं है। और तब उन्होंने यह गाथा कही जिधच्छा परमा रोगा संखारा परमा दुखा। एतं अत्वा यथाभूतं निब्बानं परमं सुखं ।। 'भूख सबसे बड़ा रोग है, संस्कार सबसे बड़े दुख हैं। ऐसा यथार्थ जो जानता है, वही जानता है कि निर्वाण सबसे बड़ा सुख है।' इस बात को समझना। भूख को सबसे बड़ा रोग कहा बुद्ध ने। क्यों? क्योंकि जब भूख प्रगाढ़ हो, पेट भरा न हो, तो सारी चेतना पेट के इर्द-गिर्द ही घूमती है। जब शरीर भूखा हो तो चेतना ऊंचाइयों पर उड़ ही नहीं सकती। शरीर के आसपास ही मंडराती है। एक सत्य तुमने देखा होगा, पैर में कांटा चुभ जाए तो फिर चेतना वहीं-वहीं घूमती है न! एक दांत टूट जाए तो चेतना वहीं-वहीं घूमती है न! सिर में दर्द हो तो चेतना वहीं-वहीं घूमती है न! जहां पीड़ा हो, चेतना वहीं रुक जाती है। इसलिए हमारे पास जो शब्द है-वेदना, वह बहुत अदभुत है। वेदना के दो अर्थ होते हैं, बोध और दुख। वेदना बना है विद से, जिससे वेद बना है। इसलिए उसका एक अर्थ होता है, बोध, ज्ञान। और वेदना का दूसरा अर्थ होता है, दुख, पीड़ा। एक ही शब्द के ये दो अर्थ और बड़े अजीब से! जिनका कोई तालमेल नहीं। लेकिन तालमेल है। जब दुख होता है, तो वहीं सारा बोध संगृहीत हो जाता है। जहां दुख है, वहीं बोध संगृहीत हो जाता है। फिर दुख से हटना मुश्किल हो जाता है। अब जो आदमी भूखा है, उसके लिए शरीर ही शरीर दिखायी पड़ता है। कहां आत्मा की बातें! हम कहते हैं न-भूखे भजन न होहिं गुपाला। अब एक आदमी भूखा है, अगर भगवान की प्रार्थना भी करे, तो कुछ होगा नहीं। सारी प्रार्थना पर भूख छा जाएगी। ___ इसलिए मैं निरंतर कहता हूं कि दरिद्रता के कारण दुनिया में धर्म बढ़ नहीं पाता। केवल समृद्ध समाज ही धार्मिक हो सकते हैं। और बुद्ध के समय में, महावीर के समय में इस देश ने बड़ी ऊंचाई ली, क्योंकि देश बड़ा समृद्ध था। तुम थोड़ा सोचो, महावीर चालीस हजार भिक्षुओं को अपने साथ लेकर घूमते थे। हर गांव की इतनी संभावना थी, क्षमता थी कि चालीस हजार भिक्षुओं को खिला सके। बुद्ध भी पचास हजार भिक्षुओं को लेकर घूमते थे। गांव-गांव की इतनी क्षमता थी कि पचास हजार भिक्षुओं को खिला सके। कभी तीन मास, चार मास वर्षा में 18
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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