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________________ एस धम्मो सनंतनो मरे, तो वासना ही तुम्हारे जीवन का ढांचा बनेगी। आने वाले जीवन का ढांचा बनेगी। ___ मरते वक्त उसके मन में एक ही भाव था, एक ही भाव था कि चादर पहन लूं, चादर पहन लूं, चादर पहन लूं। फिर मर गया, तो चीलर हुआ। चीलर का मतलब इतना ही है-कथा तो केवल एक बोधकथा है-चीलर का मतलब इतना है कि अब और तो कोई उपाय नहीं था, चीलर होकर ही चादर में प्रवेश कर सकता था, ओढ़ सकता था चादर को; तो चीलर हुआ। वह चादर की वासना उसे चीलर बना दी। तुम्हारी वासना ही तुम्हारी नयी देह बनेगी। इसलिए मरते वक्त सोच-समझकर मरना। मगर मरते वक्त सोच-समझकर मर न सकोगे, अगर सोच-समझ पूरे जीवन न सम्हाला। ___ तुमने कहानियां सुनी हैं—वे कहानियां एकदम व्यर्थ नहीं हैं, बड़ी प्रतीकात्मक हैं कि कोई आदमी मर जाता है, वह सांप होकर अपने गड़ाए हुए धन पर बैठ जाता है। वह जिंदगीभर धन की ही बात सोचता रहा, रात-दिन एक ही फिकर रही कि जहां धन गड़ाया है कोई उसमें आ न जाए; मरकर सांप हो गया है। ऐसा हो या न हो, यह सवाल नहीं है, मगर यह बात सूचक है। तुम मरकर वही हो जाओगे जो तुम्हारे जीवनभर की वासना थी। और अंतिम घड़ी में तुम्हारे चित्त पर जो बादल डोल रहे थे, उन्हीं के इशारे पर तुम्हारे नए जीवन का प्रारंभ होगा। ___ वह तिष्य चीवर में चीलर हो गया। और जब उसकी चादर उठायी गयी, तो स्वभावतः चीलर एकदम पागल हो उठा। वह दौड़ने लगा चादर के भीतर और चिल्लाने लगा, हमारी वस्तु लूट रहे हैं। मर गया, लेकिन वासना अभी भी नहीं मरी। मर गया, लेकिन मोह अभी भी नहीं मरा। मर गया, लेकिन अहंकार अभी भी नहीं मरा। ___ हमारी वस्तु लूट रहे हैं, कह-कहकर इधर-उधर दौड़ने और चिल्लाने लगा। भगवान के अतिरिक्त तो किसी ने उसकी आवाज सुनी भी नहीं। उतनी सूक्ष्म आवाज तो सिर्फ बुद्धपुरुष ही सुन सकें। वे हंसे और उन्होंने कहा कि आनंद, उन भिक्षुओं को कह दो कि तिष्य के चीवर को अभी वहीं रख दें। सात दिन बाद जब चीलर मर गया, तो बुद्ध ने कहा, अब उस चादर को बांट लो। स्वभावतः, भिक्षुओं ने पूछा। क्योंकि इसमें विरोधाभास था, सात दिन पहले अचानक कह दिया था कि रुक जाओ, चादर को वहीं छोड़ दो, अब अचानक कहा कि बांट लो। तो बुद्ध ने कहा, कामी अनंत बार मरता है। उसकी कामना तिष्य की उसे चीलर बना दी। अब चीलर की तरह वह मर गया। अब जो कामना लेकर मरा है, वह फिर उस कामना से पैदा होगा, फिर मरेगा। 222
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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