SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो भीतर की ऊर्जा निष्क्रिय है और अंतर्गामी है। इसलिए तुम अगर चर्च में, मंदिर में, गुरुद्वारे में स्त्रियों की संख्या ज्यादा देखो पुरुषों की बजाय, तो कुछ आश्चर्य मत मानना। वह स्वाभाविक है। बुद्ध के भिक्षु-संघ में भी चार भिक्षुओं में तीन स्त्रियां थीं, एक पुरुष। और वही अनुपात था महावीर के साधु और साध्वियों का। चार साधुओं में तीन साध्वियां, एक साधु। और मैंने बहुत गौर से देखा है, करीब-करीब यही अनुपात है, जहां तुम चार धार्मिक व्यक्ति पाओ, तीन स्त्रियां पाओगे, एक पुरुष। फिर स्त्रियां जब साधना में उतरती हैं तो समग्ररूपेण उतर जाती हैं। पुरुष इतना समग्ररूपेण नहीं उतर पाता। पुरुष का मन बहुत दिशाओं में भागने वाला मन है। स्त्री का मन भागने वाला मन नहीं है। विश्राम स्त्री के लिए स्वाभाविक है। तो दोनों मौजूद हैं। कन्या भी मौजूद है जिसका विवाह होना है, वर भी मौजूद है। लेकिन वर को तो बुद्ध दिखायी ही नहीं पड़े। कन्या को दिखायी पड़े। गयी, उनके चरणों में झुकी। इसे भी खयाल रखना, स्त्री के लिए झुकना सरल है। समर्पण सरल। पुरुष के लिए झुकना कठिन है। अति कठिन। बहुत समझ हो तो ही पुरुष झुक पाता है। जरा भी नासमझी हो तो पुरुष अकड़ा रह जाता है। टूट भला जाए, झुकना नहीं चाहता। उसमें ही समझता है कि पुरुषत्व है। स्त्री कोमल लता सी है, जरा सा हवा का झोंका और झुक जाती है। पुरुष सख्त मजबूती से खड़े वृक्षों की भांति है। तूफान भी आए तो झुकना नहीं चाहता। फिर अगर कहीं तूफान बड़ा हुआ और पुरुष को झुकना ही पड़ा, तो वे बड़े वृक्ष गिर जाते हैं, फिर उठ नहीं पाते। छोटे-छोटे पौधे जो झुक जाते हैं, तूफान के निकल जाने पर फिर उठ आते हैं। तूफान उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता। ___स्त्री कोमल लताओं जैसी है। झुकना उसका आंतरिक अंग है। इसलिए कन्या तो जाकर बुद्ध के चरणों में झुकी। उसे बुद्ध दिखायी पड़ गए। वह क्षणभर को बुद्ध के चरणों में झुकते समय भूल ही गयी होगी कि उसका होने वाला पति भी बैठा है। फिर न केवल वह बुद्ध के चरणों में झुकी, वह भिक्षुओं के चरणों में भी झुकी। लेकिन पुरुष को दिखायी ही न पड़ा। उस युवक को बुद्ध दिखायी ही न पड़े। उसकी आंखों में तो आग छायी हुई है। वह तो उतावला हो रहा है। कब जल्दी यह रस्म-रिवाज पूरा हो। उसकी वासना तो प्रदीप्त है। उसका होने वाला पति उसे देखकर नाना प्रकार के काम-संबंधी विचार करता हुआ रागाग्नि से जल रहा था। उसके भीतर तो अग्नि जल रही है। लपटें। धुआं ही धुआं है। उसे कहां बुद्ध का पता! आए, बैठे, इतने भिक्षु आए, उसे कुछ दिखायी नहीं पड़ा। तुमने खयाल किया, जब तुम किसी वासना से बहुत भरे होते हो तो तुम्हें वही दिखायी पड़ता है जो तुम्हारी वासना का बिंदु होता है। और कुछ दिखायी नहीं पड़ता।
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy