SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 195
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो जुड़ गए हो, वह तुम्हारी आदत हो गयी है। तुम डरते हो कि अगर दुख से छूट गए तो फिर क्या होगा? तुम डरते हो कि अगर दुख न रहा तो तुम बिलकुल अकेले-अकेले रह जाओगे। यहां रोज मेरे पास ऐसी घटना घटती है। कोई व्यक्ति अगर दो-चार-छह महीने सतत ठीक से ध्यान कर लेता है, तो घड़ी आनी शुरू हो जाती है जब चिंता पैदा नहीं होती, जब तनाव नहीं पैदा होता, जब धीरे-धीरे विचार खोने लगते हैं...। __कल ही एक युवक आया और उसने कहा कि मैं पागल तो नहीं हो जाऊंगा? क्योंकि मुझे ऐसा डर लग रहा है। अब कोई चिंता नहीं आती, दिन गुजर जाते हैं और कोई तनाव पैदा नहीं होता, तो मैं घबड़ा रहा हूं, कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि मैं पागल हो जाऊं! तनाव पुरानी आदत थी, चिंता पुरानी आदत थी, उससे तुम परिचित थे, जाना-माना था, अब अचानक वह खो रहा है, तो ऐसा लगता है, तुम्हारे पैर के नीचे की भूमि खिसक रही है। ___मनस्विद कहते हैं कि आदमी दुख को चलाए रखना चाहता है। उसको पानी सींचता रहता है। ऊपर-ऊपर से कहता भी रहता है कि मैं दुखी नहीं होना चाहता, लेकिन पानी सींचता रहता है। जब भी तुम उसे तरकीब बताओ दुख के बाहर होने की, वह कहता है, यह कैसे होगा? । एक स्त्री मुझे आकर कहती है कि मेरे पति किसी और स्त्री में उत्सुक हो गए हैं, मैं बहुत दुखी हो रही हूं, मुझे दुख से बचाएं। मैं उससे कहता हूं, ईर्ष्या दुख का कारण है, तू ईर्ष्या छोड़ दे। तो वह कहती है, यह कैसे होगा? दुख से छुड़ा लें, ईर्ष्या छोड़नी नहीं है! और ईर्ष्या दुख का कारण है। अब जब यह बात बिलकुल साफ हो जाए–साफ है, सारे बुद्धों के वचनों का सार इतना है कि ईर्ष्या दुख देती है। अब वह स्त्री मुझसे कहने लगी-संन्यासिनी है, पति भी संन्यासी है-स्त्री मुझे कहने लगी कि यह तो नहीं हो सकता। मैं मर जाऊंगी, मैं आत्महत्या कर लूंगी। आत्महत्या करने को राजी है, ईर्ष्या छोड़ने को राजी नहीं है। जरा सोचो! ईर्ष्या का मूल्य आत्महत्या! जीवन के मूल्य से.भी ज्यादा मालूम पड़ता है। वह कहने लगी, यह तो हो ही नहीं सकता है, यह तो मैं बर्दाश्त ही नहीं कर सकती हूं, यह तो मैं सोच भी नहीं सकती हूं कि मेरे पति और किसी स्त्री में उत्सुक हैं। और अभी सिर्फ उत्सुक हैं! अभी कुछ और नहीं हुआ है। लेकिन उत्सुकता! कि उसके साथ बैठकर कभी-कभी हंस-बोल लेते हैं। यह स्त्री पहले तो मुझे आयी तो उसने कहा कि ध्यान भी कर रही हूं दो साल से, कोई छह महीने पहले ध्यान में एक स्त्री दिखायी पड़ने लगी। मैंने पूछा, ध्यान में स्त्री! तू भी खूब नया अनुभव लायी! अभी कुंडलिनी और चक्र इत्यादि के लोग लाते हैं, मगर ध्यान में स्त्री! तभी मुझे शक हुआ कि मामला तो कुछ गड़बड़ है। फिर मैंने पूछा, फिर क्या हुआ? उसने कहा, फिर धीरे-धीरे उसका चेहरा साफ 182
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy