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________________ और अब, ओशो ने उन वचनों को और नए-नए अर्थ, नए-नए आयाम, नयी-नयी अर्थ-छटाएं देकर न केवल आज के मनुष्य के लिए उन्हें बोधगम्य, सरस, मनोवैज्ञानिक, वैज्ञानिक व व्यावहारिक बना दिया है बल्कि भविष्य के मनुष्य के लिए भी, आने वाली तमाम सदियों के लिए भी।। ओशो ने अर्थों के ऐसे-ऐसे रहस्य खोले हैं गौतम बुद्ध के इन वचनों के, मनोविज्ञान की ऐसी-ऐसी कुंजियां प्रयोग की हैं छिपे खजानों पर पड़े ताले खोलने में कि स्वयं गौतम बुद्ध हैरत में पड़ जाएं। कई बार तो सूत्रों में, वचनों में ऐसे अर्थ डालते हैं ओशो जो गौतम बुद्ध के स्वयं के खयाल में न आए होंगे उन्हें कहते वक्त। संदर्भ-कथाओं की बारीकियों व उनके मनोविज्ञान के उघाड़े जाने में जिस अचिंत्य ओशो के दर्शन होते हैं, पढ़ते अथवा सुनते समय, वे एक ओर तो व्यक्ति को विराट के आयाम में ले चलते हैं और दूसरी ओर उसे उस घटना की छोटी-छोटी बातों तक से एकात्म कर देते हैं। छोटी से छोटी बात भी व्यक्ति को अपनी ही बात लगती है, अपने ही जीवन से संबंध रखती हुई। व्यक्ति अपने आप को किसी धर्मशास्त्र का नहीं बल्कि आत्मशास्त्र (स्वयं के शास्त्र) का अध्ययन करता हुआ पाता है। यही बात ओशो की जीवनदृष्टि को युनिवर्सल अपील (जागतिक पसंद) प्रदान करती है, जो 'जागतिक धार्मिकता' (युनिवर्सल रिलीजसनेस) के ओशो के सपने का मार्ग बखूबी प्रशस्त करती है। धम्मपद के इन सूत्रों— गाथाओं के साथ उनकी संदर्भ-कथाएं हैं कि कब, कहां, किन घटनाओं-परिस्थितियों के अंतर्गत गौतम बुद्ध ने कौन से सूत्र कहे। ये घटनाएं सामान्य दैनंदिन जीवन से हैं; दैनंदिन जीवन व उसके घटनाक्रमों, व्यवसायों, व्यवहारों, संबंधों व क्रियाकलापों से हैं। कुछ संदर्भ-कथाएं भिक्षुओं (संन्यासियों) के जीवन से हैं, कुछ गृहस्थों (संसारियों) के जीवन से हैं, कुछ दोनों के सम्मिश्रण हैं; कुछ सीधे ही गौतम बुद्ध से संबंधित हैं; किंतु सबों के केंद्रीय-बिंदु पर गौतम बुद्ध हैं और इस प्रकार ये सभी के लिए, मनुष्यमात्र के लिए समान रूप से उपयोगी हैं। इन गाथाओं, इन कथाओं का संबंध किसी वर्ग-विशेष, जाति-विशेष, विचारधारा-विशेष से नहीं है—ये सबके लिए हैं। चूंकि ये रोजमर्रा के जीवन में घटी वास्तविक घटनाएं हैं, इसलिए न इनमें कहीं कोई कृत्रिमता है, न कोई बनावट; न कोई अतिशयोक्ति है, न कोई असहजता। अनगढ़, अनतराशे, सीधे खदान से निकले हीरों जैसी ये घटनाएं ज्यों की त्यों सामने रख दी गयी हैं। यही इनकी खूबी भी है। इसी में रूपांतरण की, 'ट्रांस्फार्मेशन' की कीमिया भी छिपी है। बुद्धपुरुष के समक्ष जब तक कोई बात, व्यक्ति अथवा घटना बिना किसी दुरावं-छिपाव के, बिना किसी लाग-लगाव के, बिना किसी बनाव-श्रृंगार के न पहुंचे-अपने सहज-सरल रूप में रूपांतरण का जादू घटित नहीं होता। वह कुछ ऐसे ही होता है जैसे कोई
SR No.002385
Book TitleDhammapada 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages378
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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