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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हें दुख देने को उत्सुक है? अगर परमात्मा कहीं है, तो एक बात निश्चित है कि तुम्हें दुख देने को उत्सुक नहीं है। परमात्मा और दुख देने को उत्सुक हो! तो फिर शैतान और परमात्मा का भेद क्या करोगे? और ध्यान रखना, परमात्मा अगर तुम्हें दुख देने में उत्सुक हो, तो खुद भी दुखवादी होगा और दुख ही पाएगा। जो दुख लिखेगा दूसरों के जीवन में, वह अपने जीवन में भी दुख लिख लेगा। जो चारों तरफ दुख बरसाएगा, उस पर भी दुख के छींटे पड़े बिना न रहेंगे। और जो सबके जीवन में अंधेरा कर देगा, दीए फूंक देगा, उसे खुद भी अमावस में रहना पड़ेगा। यह भूल, अगर परमात्मा कहीं है, तो न करेगा। यदि परमात्मा है, तो वह तुम्हारे जीवन में सुख चाहेगा, दुख नहीं चाह सकता। क्योंकि तो ही उसके जीवन में भी सुख की संभावना है। परमात्मा शब्द को हटा लो, पूरा अस्तित्व कहो। अस्तित्व भी तुम्हारे जीवन में सुख चाहेगा, क्योंकि तुम अस्तित्व के हिस्से हो। तुम्हारा दुख अंततः अस्तित्व के कंधों पर ही पड़ेगा। अगर व्यक्ति दुखी हैं, अगर अंश दुखी हैं, खंड दुखी हैं, तो पूर्ण भी दुखी हो जाएगा। तुम्हारे पैर में दर्द है, तो पैर में ही थोड़े ही दर्द होता है, तुममें दर्द हो जाता है। तुम्हारे सिर में दर्द है, तो सिर में ही थोड़े ही सीमित रहता है, तुम्हारे पूरे तन-प्राण पर फैल जाता है। तुम पूरे के पूरे ही उसके दुख को अनुभव करते हो। हम जुड़े हैं। यहां कोई भी दुखी होगा तो सारा अस्तित्व दुख से भरता है, कंपता है। ___ अस्तित्व की कोई आकांक्षा तुम्हें दुखी करने की नहीं है। अगर अस्तित्व की कोई आकांक्षा हो, तो तुम्हें महासुखी करने की होगी। फिर भी तुम दुखी हो। इसका एक ही अर्थ हो सकता है, तुम अस्तित्व से लड़ रहे हो, तुम अस्तित्व के विपरीत जा रहे हो, तुम नदी की धार से संघर्ष कर रहे हो। दुख का मेरे लिए एक ही अर्थ है कि तुम समझ नहीं पाए, तुम जीवन के विपरीत चल रहे हो, तुम दीवाल से सिर मार रहे हो, तुम्हें दरवाजा अभी भी सूझा नहीं। तुमने दीवाल को दरवाजा समझा है। तुम कंकड़-पत्थरों को रोटी समझ रहे हो। नदी में या तो तुम तैर सकते हो नदी के विपरीत, तब तुम्हें नदी लड़ती हई मालम पड़ेगी कि तुमसे संघर्ष कर रही है। तब तुम्हें लगेगा कि नदी तुम्हारे विपरीत है, तुम्हारी शत्रु है। तुम नदी के साथ बह सकते हो। रामकृष्ण कहते थे, भक्त नदी में नाव छोड़ता है, तो पतवार नहीं रखता अपने पास, पाल खोल देता है। हवाएं जहां ले जाती हैं, उन्हीं के साथ चल पड़ता है। भक्त पाल खोलता है, पतवार नहीं। ___ तुमने पतवारें उठा रखी हैं। और तुम कुछ नदी से जद्दो-जहद कर रहे हो। हारोगे। क्योंकि पूर्ण से कौन कब जीता है! हारोगे तो विषाद आएगा। फिर विषाद आएगा, तो और भी जोर से लड़ोगे। जितने हारोगे, उतने जीत की पागल आकांक्षा पैदा होगी। जितनी पागल आकांक्षा होगी, उतने ज्यादा हारोगे। तुम एक दुष्ट-चक्र 82
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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