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________________ एस धम्मो सनंतनो मिला हो, उनसे अपने को बचाओ। अगर क्रोध करके सुख मिला हो, दोहराओ, पुण्य है। अगर करुणा करके दुख मिला हो, बिलकुल मत दोहराओ, पाप है। अगर देकर सुख पाया हो, दो। अगर कंजूस बनकर सुख पाया हो, रोको। इसको कसौटी समझ लो। लेकिन फल, परिणाम पर ध्यान रखो। ___जब तक पुण्य पकता नहीं-उसका फल नहीं मिलता-तब तक पुण्यात्मा भी पुण्य नहीं समझता है। लेकिन जब पुण्य पक जाता है, तब उसे पुण्य दिखायी पड़ता है।' स्वभावतः, बीज को बोते हैं, समय लगता है। फल आते हैं, तभी पता चलता है, नीम बोयी थी कि आम बोए थे। बीज का निर्णय तो उसी दिन होगा जब फल लग जाएंगे। फिर कड़वे लगे, मीठे लगे, उससे ही निर्णय होगा। उससे तुम भविष्य के लिए शिक्षा लो। अगर कड़वे फल लगे हों, तो फिर दुबारा उन बीजों को मत बोओ। इतनी ही जिसे समझ में आ गयी, उसने बुद्धत्व की यात्रा पर पहला कदम रख दिया। जिसके पीछे हों गम की कतारें भूलकर उस खुशी से न खेलो जिसके पीछे हों गम की कतारें भूलकर उस खुशी से न खेलो क्योंकि वह खुशी सिर्फ दिखायी पड़ती है; पीछे से दुखों की कतार आ रही है। वह सिर्फ मुखौटा है। ___'वह मेरे पास नहीं आएगा-ऐसा सोचकर पाप की अवहेलना न करे। जैसे पानी की बूंद-बूंद गिरने से घड़ा भर जाता है, वैसे ही मूढ़ थोड़ा-थोड़ा संचय करते हुए पाप को भर लेता है।' हम निरंतर ऐसे ही सोच-विचार में अपने को उलझाए रहते हैं—वह मेरे पास नहीं आएगा। क्रोध, लोभ, मोह, काम मेरे पास नहीं आएगा, दूसरों के पास जाता है-ऐसी अवहेलना न करे। क्योंकि इसी अवहेलना के द्वार से वह आता है। एक बड़ी प्रसिद्ध कहानी है अरब में कि ईश्वर ने तो बड़ी घोषणाएं की हैं संसार में कि मैं हूं-कुरान है, बाइबिल है, वेद हैं, उपनिषद हैं, गीता है-जहां ईश्वर घोषणा करता है : मामेकं शरणं व्रज; मेरी शरण आ, मैं हूं। कहानी कहती है, लेकिन शैतान ने अब तक एक भी शास्त्र नहीं लिखा और घोषणा नहीं की। अजीब बात है! क्या शैतान को विज्ञापनबाजी का कुछ भी पता नहीं? क्या शैतान को विज्ञापन के शास्त्र का कोई अनुभव नहीं? ईश्वर के तो कितने मंदिर, कितनी मस्जिदें, कितने गुरुद्वारे, कितने चर्च खड़े हैं। घंटियां बजती ही रहती हैं, विज्ञापन होता ही रहता है कि ईश्वर है। शैतान बिलकुल चुप है। किसी ने शैतान से पूछा है कहानी में। उसने कहा कि हम जानते हैं। मेरी सारी खूबी इसी में है कि लोग मेरी अवहेलना करें। लोगों को पता न हो कि मैं हूं, तो मेरा 74
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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