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________________ एस धम्मो सनंतनो क्या संबंध है! और ऐसा भी नहीं कि वे झूठ बोल रही हों-मेरी बात ठीक से समझना-ऐसा भी नहीं कि वे झूठ बोल रही हैं। हो ही जाता है। इतनी निष्णात हो गयी है कि खुद को भी झूठ में पकड़ नहीं पाती। पति का दर्शन हुआ कि सिरदर्द भी उठा। यह इतना स्वाभाविक हो गया है क्रम, क्योंकि सिरदर्द हो तो ही पति की सहानुभूति, नहीं तो वह अखबार लेकर बैठ जाता है। अखबार में छिपा लेता है अपने को। वह अखबार भी सब उपाय है। वह दिन में तीन दफे पढ़ चुका है उसी अखबार को। दफ्तर में भी वही काम करता रहा अखबार पढ़ने का, घर आकर भी उसी को पढ़ता है। वह अखबार पढ़ने के पीछे आड़ में अपने को छिपाता है कि बचूं किसी तरह! वह उसका छाता है। लेकिन पत्नी के सिर में दर्द है तो अखबार रखना पड़ता है। सिर पर हाथ रखो, बैठो, दो सुख-दुख की बातें करो। अगर तुमने अपने दुख में किसी भी तरह का सुख लिंया, तो तुम दुख से कभी बाहर न हो सकोगे। फिर तो तुमने नर्क में भी धन लगा दिया। वह तुम्हारा धंधा हो गया। इसलिए जिस व्यक्ति को आत्मजागरण की यात्रा पर जाना हो, सबसे पहली और बहुत बुनियादी बात है कि वह अपने दुखों में किसी तरह का व्यवसाय न करे। अन्यथा दुख को छोड़ना असंभव है। फिर तो तुम उसे पैदा करना चाहोगे। . 'मनुष्य यदि पुण्य करे तो उसे पुनः-पुनः करे, उसमें रत होवे; क्योंकि पुण्य का संचय सुखदायी है।' गहन व्यथा के बाद हर्ष का नव नर्तन है प्रसव पीर के पार नवल शिशु का दर्शन है दुख छिपा है सुख की आड़ में। पाप सुख का आश्वासन देता है। पास गए, कांटा चुभता है, दुख मिलता है। ठीक इससे उलटी अवस्था पुण्य की है, सुख की है। पुण्य तुम्हें कोई आश्वासन नहीं देता। साधना का आवाहन देता है, आश्वासन नहीं देता। पुण्य कहता है, श्रम करना होगा, तपश्चर्या से गुजरना होगा, निखरना होगा। क्योंकि सुख इतना मुफ्त नहीं मिलता जितना तुमने पाप के आश्वासनों के कारण मान रखा है। पाप कहता है, मिल जाएगा, तुम सुख पाने के अधिकारी हो, बस आ जाओ, जरा सी करने की बात है, कुछ भी करने की बात नहीं है वस्तुतः, सिर्फ मांगो और मिल जाएगा। पुण्य कहता है, करना होगा, अर्जित करना होगा, निखारना होगा स्वयं को, सुख ऐसे आकाश से नहीं उतरता, तुम्हारे भीतर के अंतर-भाव की क्षमता जब पैदा होती है, पात्रता जब पैदा होती है, तब उतरता है। मुफ्त नहीं मिलता। भीख में नहीं मिलता। श्रम से कमाना होता है। मूल्य चुकाना होता है। पुण्य कहता है, साधना। पाप कहता है, आश्वासन-सस्ते। वह कहता है, मुफ्त में, कुछ करने की बात ही नहीं; यह लो, हाथ भर फैलाओ, हम देने को तैयार हैं। 72
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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