SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एस धम्मो सनंतनो अद्वैत का अर्थ है : जहां दो को देखने की दृष्टि न रही, जहां विभाजन करने का रस न रहा, जहां तुम चीजों को विपरीतता में देखते ही नहीं । रात है और दिन है, किसने तुम्हें कहा अलग-अलग हैं? कहां तुम विभाजन की रेखा खींचते हो ? कहां बनाते हो सीमा ? दिन कहां समाप्त होता है ? किस घड़ी में, किस पल ? किस पल रात शुरू होती है ? दोनों एक हैं । प्रकाश और अंधकार एक ही ऊर्जा के दो नाम हैं, एक ही ऊर्जा की अभिव्यक्ति के दो ढंग हैं। परमात्मा और आत्मा भी एक ही बात को कहने की दो शैलियां हैं। भक्ति और ज्ञान भी, संकल्प और समर्पण भी । जहां-जहां तुम्हें विरोध दिखायी पड़े वहां-वहां चेत जाना। सम्हलना। कहीं कोई भूल हुई जाती है। कहने के ढंग हैं। फिर तुम्हें जो रुच जाए, तुम्हें जो भला लग जाए, कहने की वही शैली चुन लेना। लेकिन कहने की शैली को सत्य की अभिव्यंजना मत मानना । तुम्हारी मौज, तुम भक्ति के रस में डुबाकर कहो अपने अनुभव को। तुम अपने अनुभव को भगवान कहो, तुम्हारी मौज। तुम अपने अनुभव को आत्मा कहो, भगवान का शब्द न दो। लेकिन जिस तरफ इशारा हो रहा है, वह एक ही है। गालिब का एक बहुत महत्वपूर्ण पद है कतरा अपना भी हकीकत में है दरिया लेकिन हमको तकलीदे-तुनकजरफिए-मंसूर नहीं सूफी फकीर मंसूर ने कहा, अनलहक ! मैं ब्रह्म हूं, मैं परमात्मा हूं । गालिब ने ' खूब गहरा मजाक किया है। किसी ने मंसूर पर ऐसा मजाक नहीं किया । गालिब कहता है कतरा अपना भी हकीकत में है दरिया लेकिन माना कि बूंद भी सागर है, यह मुझे भी पता है। हमको तकलीदे-तुनकजरफिए-मंसूर नहीं लेकिन मंसूर का कहने का ढंग जरा ओछा है। यह कहने का ढंग हमें पसंद नहीं मालूम तो हमें भी है कि मैं ब्रह्म हूं, लेकिन यह बात हमें कहनी जंचती नहीं । मंसूर ने जरा जल्दबाजी कर दी। यह कहने की बात नहीं थी। यह समझ लेने की बात थी। यह चुपचाप पी लेने की बात थी। यह ढंग हमें पसंद नहीं। यह बड़ी महत्वपूर्ण बात गालिब कह रहा है । गालिब यह कह रहा है कि बात तो बिलकुल सही है, रत्तीभर भी कुछ भूल-चूक नहीं, लेकिन कहने की यह शैली हमें जंचती नहीं । कतरा अपना भी हकीकत में है दरिया लेकिन हमको तकलीदे-तुनकजरफिए -मंसूर नहीं गालिब कहता है, हमें इस कहने में थोड़ा ओछापन मालूम पड़ता है। बूंद अपने को सागर कहे, यह बात छोटी हो गयी। सागर को ही कहने दो। बूंद अपनी घोषणा 30
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy