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________________ एस धम्मो सनंतनो है। अशांति बीज नहीं है, फल है। बीज खोजो। तुम जरूर कुछ ऐसा करना चाह रहे हो, जिससे अशांति पैदा हो रही है। तुम जरूर ऐसा कुछ कर रहे हो, जिससे अशांति पैदा हो रही है। उसे तो तुम करते जाना चाहते हो और अशांति से भी बचना चाहते हो, यह असंभव है। जैसे एक आदमी तेज दौड़ रहा है, छाती हांपने लगी। वह कहता है, छाती न हां, ऐसी कोई तरकीब बता दीजिए। लेकिन दौड़ जारी रखना चाहता है। वह कहता है, दौड़ेंगे तो, हम दौड़ने से कैसे रुक जाएं? असल में तो छाती न हांपे, इसीलिए पूछते हैं, ताकि ठीक से दौड़ सकें। मेरे पास राजनेता आ जाते हैं। वे कहते हैं, मन में बड़ी अशांति है, रात नींद नहीं आती। मैं कहता हूं कि राजनीतिज्ञ को और नींद आती है, यह चमत्कार है! तुम्हें नहीं आती, यह स्वाभाविक है । अब या तो राजनीति छोड़ दो, या नींद को जाने दो। अक्सर तो वह नींद ही छोड़ने को राजी होते हैं। वह कहते हैं कि फिर अब थोड़ा सा तो फासला रह गया है, पहुंचे - पहुंचे हैं; उपमंत्री हो गए हैं, मंत्री हुए जाते हैं; या मंत्र हो गए हैं तो अब मुख्यमंत्री होने की बात है; अब थोड़े दिन और सही। इतना भूले-भटके, अब थोड़े दिन और सही । लेकिन कभी कोई जानकर भूला भटका है ? ऐसा आदमी दोहरा धोखा दे रहा है। वह यह कह रहा है, हम समझ भी गए कि यह सब भूल-चूक है, लेकिन फिर भी अपनी मौज से कर रहे हैं। मौज से कभी किसी ने आग में हाथ डाला है? समझे कि रुक जाता है। 'दुःशील और असमाहित होकर सौ साल जीने की अपेक्षा... i जीना कहां है? जहां चित्त तनावों से भरा हो, जहां चैन न हो, जहां चैन की बांसुरी कभी बजी न हो, जहां कोई शीतल आंतरिक छाया न हो जहां विश्राम कर सको, जहां दो घड़ी सिर टिकाकर लेट सको ऐसा कोई स्थल, शरण स्थल न हो, तो तुम सौ साल जीओ, यह ऐसे ही है जैसे कोई सौ साल एक सौ दस डिग्री बुखार जीए। यह कोई जीना हुआ ! इससे तो मर जाना भी शांति होती । कम से कम विश्राम तो होता। यह तो एक पीड़ा हुई, यह तो एक नर्क हुआ । समय की लंबाई से कोई संबंध नहीं। शांति की गहराई से जीने का संबंध है। उसी को बुद्ध आयु कहते हैं। . शीलवंत और ध्यानी का एक दिन जीना भी श्रेष्ठ है । ' किसको बुद्ध शीलवान कहते हैं? शील का, चरित्र का, बड़ा अपशोषण हुआ है । शील के नाम पर, चरित्र के नाम पर, लोगों को बड़े झूठे पाखंड सिखाए गए हैं। अक्सर होता है, जब कोई बहुत महत्वपूर्ण बात होती है, तो उसकी आड़ में धोखाधड़ी चल पड़ती है । जितने परम ज्ञानी हुए, सभी ने शील के गुणगान गाए। स्वभावतः, शील का 14
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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