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________________ आत्म-स्वीकार से तत्क्षण क्रांति इसलिए मैं तुमसे एक गहरी बात कहता हूं, यहां कोई कारण नहीं है! हां, तुम्हें बिना कारण के जीना कठिन मालूम पड़ता हो-यह तुम्हारी मजबूरी है तो तुम कोई कारण पकड़ लो कि ईश्वर को खोजने के लिए जीवन है। पर बड़ा मजा यह है कि खोया किसलिए है। कुछ लोग हैं, जो कहते हैं, ईश्वर को खोजने के लिए जीवन है। यह भी बड़ा मजा है। तो यह ईश्वर प्रगट ही क्यों नहीं हो जाता, मामला खतम करो! क्यों व्यर्थ लोगों को परेशान कर रहे हो! इनकी आंखों के आंसू उसे दिखायी नहीं पड़ते? इनके जीवन का भयंकर दुख उसे दिखायी नहीं पड़ता? इनका संताप दिखायी नहीं पड़ता? वे छिपे जा रहे हैं! इन जनाब को भी खूब सूझी! हजरत अब तो बाहर आ जाओ! खूब रुला लिया इन लोगों को। नहीं, जीवन इसलिए है कि ईश्वर को खोजो! मगर खोया कैसे? कुछ कहते हैं, जीवन इसलिए है, सच्चरित्रवान बनो। कि दुश्चरित्रवान कैसे बने? ये सब बातें हैं। मैं तुमसे कहता हूं, जीवन बस जीवन के लिए है। होना होने के लिए है। किसी ने ई.ई.कमिंग से, एक बहुत महत्वपूर्ण कवि से पूछा, तुम्हारी कविताओं का अर्थ क्या है? उसने सिर ठोंक लिया अपना। उसने कहा, फूलों से कोई नहीं पूछता कि तुम्हारा अर्थ क्या है! मेरी जान के पीछे क्यों पड़े हो? चांद-तारों से कोई नहीं पूछता कि तुम्हारा अर्थ क्या है! जब चांद-तारे बिना अर्थ के हो सकते हैं और फूल बिना अर्थ के हो सकते हैं, तो मेरी कविता को अर्थ बताने की जरूरत क्या? परमात्मा से क्यों नहीं पूछते कि तुम्हारा अर्थ क्या है ? जब सारा अस्तित्व बिना अर्थ के है और बड़े मजे से है और कहीं कोई अड़चन नहीं आ रही, तो मुझ गरीब के क्यों पीछे पड़ते हो? मझे पता नहीं है। कूलरिज से, एक दूसरे महाकवि से, किसी ने पूछा कि तुम्हारी कविताओं का अर्थ...! एक कविता उलझ गयी है और मैं सुलझा नहीं पाता हूं। उसने कहा कि जब लिखी थी, दो आदमियों को पता था, अब एक को ही पता है। पूछा कि वे कौन दो आदमी थे। उसने कहा, मुझे और परमात्मा को पता था, जब लिखी थी; अब उसको ही पता है। अब मुझे भी पता नहीं है। मैं खुद ही उससे पूछता हूं कि कुछ तो बोल, इसका अर्थ क्या है! ___ तुम मतलब समझ रहे हो? मतलब साफ है। अर्थ पूछने की बात ही थोड़ी नासमझी से भरी हुई है। कोई अर्थ नहीं है। इसको तुम यह मत समझ लेना कि जीवन अर्थहीन है। क्योंकि अर्थहीनता भी अर्थ की ही तुलना में हो सकती है। यहां अर्थ है ही नहीं, तो अर्थहीनता कैसे होगी? गरीबी, धन हो तो हो सकती है; धन हो ही न तो गरीबी कैसे होगी! गरीबी के लिए अमीरी होनी जरूरी है। अर्थहीनता के लिए अर्थ होना जरूरी है। यहां अर्थ है ही नहीं तो अर्थहीनता कैसी! बस, है। अकारण। बेबूझ। यही इसका रहस्य होना है। 249
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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