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________________ एस धम्मो सनंतनो आनंद ने कहा, मैं चालीस वर्ष आपके पास रहा और मैं आपके पास न हो पाया, क्या बाधा है? तो बुद्ध ने कहा, तू ज्यादा सोच-विचार करता है। तेरा मुझसे संबंध विचार का है। तू अभी भी ध्यान में मुझसे न जुड़ा। यह ध्यान बुद्ध का शब्द है प्रेम के लिए। कहो ध्यान, कहो प्रेम। मेरे सारे विरोधी वक्तव्यों के बावजूद ही अगर तुम मेरे साथ हो, तो ही मेरे साथ हो। इसलिए मैं तुम से यह भी कह दूं कि मेरे इतने विरोधी वक्तव्यों के पीछे बहुत-बहुत कारण हैं। उनमें एक यह भी है कि जो इनके बावजूद मेरे पास होंगे, उनको ही मैं चाहूंगा कि मेरे पास हों। जो इनके कारण हट जाएंगे, उनकी बड़ी कृपा! उनके पास होने का कोई मूल्य न था। भीड़ बढ़ाने से तो कोई प्रयोजन नहीं। वे समय ही खोते, अपना भी, मेरा भी। वे जगह ही भरते, अच्छा हुआ हट गए। ___ दो तरह के लोग हैं। सभी जीवन की घटनाएं दो हिस्सों में बंटी होती हैं। मेरे करीब हजारों आने वाले लोगों में जब पुरुष मेरे पास आते हैं, तो वे कहते हैं, आपके विचार हमें अच्छे लगते हैं, इसलिए आपसे नाता बनाते हैं। स्त्रियां जब मेरे पास आती हैं, वे कहती हैं, आप हमें अच्छे लगते हैं, इसलिए आपके विचार भी अच्छे लगते हैं। और ऐसा स्त्री-पुरुष का विभाजन बहुत साफ-सुथरा नहीं है। बहुत से पुरुष हैं जो स्त्रियों जैसे हृदयवान हैं। बहुत सी स्त्रियां हैं जो पुरुषों जैसी बुद्धिमान हैं। बुद्धि कहती है, विचार अच्छे लगते, इससे आपसे लगाव है। हृदय कहता है, आपसे लगाव है, इसलिए विचार भी अच्छे लगते हैं। अब थोड़ा सोचो, जो विचार के कारण मुझसे लगाव बनाया है, कल अगर विचार ठीक न लगे! और ऐसे मैं हजारों मौके लाता हूं जब विचार ठीक नहीं लगते। मेरे पास बहुत से गांधीवादी लोग थे। फिर मैंने उनसे छुटकारा चाहा। गांधी से कुछ लेना-देना न था। लेकिन गांधीवादियों के कारण गांधी के विपरीत बोला। वे भाग गए। जो उसमें से बच गए, उन्होंने सबूत दिया कि उनका नाता मुझसे है। मेरे पास, जब मैं गांधी के विपरीत बोला, तो सारे मुल्क के समाजवादी, साम्यवादी, उनकी भीड़ बढ़ने लगी। कम्युनिस्ट, जो मुझे कभी सुनने न आए थे, वे आने लगे। फिर जब मैं समाजवाद के खिलाफ बोला, वे भाग गए। उसमें से कुछ रुक गए। जो रुक गए, वही मूल्यवान थे। निरंतर मैं यह करता रहा हूं, निरंतर मैं यह करता रहूंगा। ___मैं चाहता हूं कि तुम मेरे कारण ही मेरे पास होओ। कोई और इतर कारण नहीं है, यह संबंध सीधा है, तो ही तुम्हारा यहां होना उचित है। अन्यथा तुम किसी और की जगह घेर रहे हो, खाली करो। कोई और वहां होगा, कोई और लाभ ले लेगा। तुम द्वार पर भीड़ मत करो। शुभ है कि मेरे सारे विरोधी वक्तव्यों के बावजूद तुम यहां हो। इसे भूलना मत। इसे सतत स्मरण रखना। क्योंकि कभी-कभी ऐसा होता है-इसे भी तुम समझ लो–कि मैं गांधी के खिलाफ बोला, तुम गांधीवादी थे ही नहीं, इसलिए तुम्हें कोई 198
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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