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________________ एस धम्मो सनंतनो लगता है। तुम जब पूरे जल जाओगे, जब तुम्हारे भीतर सारा कचरा-कूड़ा जल जाएगा, तुम खालिस कुंदन हो जाओगे, एक शुद्ध लपट रह जाओगे जीवन-चेतना की, बोध की, प्रकाश की, तुम्ही परमात्मा हुए। __अभी तुम जो हो, उसके कारण भी तुम्ही हो। कल तक तुम जो थे, उसके कारण भी तुम्हीं थे। कल भी तुम जो होओगे, उसके कारण भी तुम्ही होगे। इस बात को खयाल में ले लेना। यह आधारभूत है। बुद्ध के साथ बचने का उपाय नहीं। लुका-छिपी न चलेगी। बुद्ध ने आदमी को वहां पकड़ा है जहां आदमी संदियों से धोखा देता रहा है। बुद्ध ने मनुष्य को छिपने की कोई ओट नहीं छोड़ी। इसलिए बुद्ध का साक्षात्कार आत्म-साक्षात्कार है। बुद्ध को समझ लेना अपने को समझ लेना है। बुद्ध के साथ पूजा न चलेगी, प्रार्थना न चलेगी; बुद्ध के साथ भिक्षापात्र न चलेगा; बुद्ध के साथ तो आत्मक्रांति, रूपांतरण, खुद को बदलने का दुस्साहस! पहला सूत्र है_ 'जो अभिवादनशील है और जो सदा वृक्षों की सेवा करने वाला है, उसकी चार बातें (धर्म) बढ़ती हैं : आयु, वर्ण, सुख और बल।' __ एक-एक शब्द समझना होगा। क्योंकि बुद्ध जब शब्दों का प्रयोग करते हैं, तो वह वैसा ही नहीं है जैसा औरों ने किया है। शब्द तो वही हैं, लेकिन बुद्ध ने उन पर अर्थों की बड़ी नयी कलमें लगायी हैं। 'जो अभिवादनशील है।' बुद्ध ने अभिवादन करने को तो कोई भी नहीं छोड़ा। परमात्मा है नहीं। ऐसे तो कोई चरण नहीं हैं जहां सिर झुकाना हो। लेकिन फिर भी सिर झुकाने की कला को स्वीकार किया। इसलिए बात जरा सूक्ष्म हो जाती है। स्थूल पैर हों, तो सिर झुकाना बड़ा आसान। एक बार भरोसा कर लिया कि परमात्मा है, पैर हैं, झुक गए। झुकना सहज हो जाता है, पैर हों तो। बुद्ध कहते हैं, पैर तो यहां कोई भी नहीं हैं। यहां कोई नहीं है जिसके सामने झको, लेकिन झुकने की कला मत भूल जाना। इसलिए बात जरा सूक्ष्म और नाजुक हो जाती है। गहरी समझ होगी तो ही पकड़ में आएगी। स्थूल बुद्धि की भी पकड़ में आ जाता है कि यह पैर छूने योग्य हैं, क्योंकि इनसे पाने योग्य कुछ है। तो छूना भी व्यवसाय हो जाता है। ___ मंदिर में जाकर लोग झुक लेते हैं परमात्मा के चरणों में, पाने की आकांक्षा है कुछ। इन चरणों से मिल सकेगी, इन चरणों के प्रसाद से मिल सकेगी। यह झुकना न हुआ, सौदा हुआ। यह तुम परमात्मा का भी उपयोग करने चले गए। यह प्रार्थना न हुई। इसे तुम प्रार्थना मत कहना। यह तो परमात्मा को भी साधन बना लेना हुआ। तुमने कभी ऐसी प्रार्थना की है जिसमें कुछ न मांगा हो? अगर नहीं, तो फिर प्रार्थना की ही नहीं। भक्ति शास्त्र कहता है-प्रार्थना करना, मांगना मत, नहीं तो
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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