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________________ आज बनकर जी! का तीर लोहे का होगा—इससे क्या फर्क पड़ता है? निशाना साधना आ गया हो, तो सभी तीर निशाने पर पहुंच जाते हैं—निशाना एक है। तो इन सूत्रों में तुम थोड़ी झलक लेने की कोशिश करना, अन्यथा तुम बहुत उलझन में भी पड़ सकते हो कि अब क्या करें, क्या न करें? तुम्हारी उलझन बढ़ाने के लिए ये चर्चाएं नहीं हैं, घटाने के लिए हैं। ये जो बुद्ध के सूत्र हैं, इनके साथ-साथ तुम देखने की कोशिश करना कि बुद्ध यद्यपि प्रेम की बात भी नहीं उठाते, लेकिन प्रेम की ही बात करते हैं, उनके कहने का ढंग और है। पहला सूत्रः ‘दंड से सभी डरते हैं, मृत्यु से सभी भय खाते हैं। अतः अपने समान ही सबको जानकर न मारे, न मारने की प्रेरणा करे।' 'अपने समान ही सबको जानकर...।' यह तो प्रेम का पूरा शास्त्र हो गया। प्रेम का अर्थ क्या होता है? दूसरे को अपने समान जान लेना। जिसको तुमने अपने समान जान लिया, उससे ही तुम्हारा प्रेम है। जिसके साथ तुमने भेद, द्वैत अलग कर लिया, जिसके साथ तुमने अपना अलग-थलगपन छोड़ दिया, जिसके साथ तुमने अपने जीवन के आंगन को मिल जाने दिया; जिसके साथ तुमने कहा, अब दो नहीं हैं, यहां हम एक हैं, यहां हम बीच में कोई सीमा-रेखा न खड़ी करेंगे, हमारा अब कोई अलग-अलग आंगन न होगा; हमारा अस्तित्व जुड़ता है, मिलता है, पिघलता है, एक-दूसरे में, एक-दूसरे में प्रवेश करता है, वहीं प्रेम है। प्रेम का अर्थ ही होता है, दूसरे को अपने समान जान लेना। प्रेम का कोई और अर्थ हो ही नहीं सकता। ___लेकिन बुद्ध प्रेम शब्द का उपयोग नहीं करते। वह उनकी शैली नहीं। वह उनके निबंध का ढंग नहीं। वह उनकी भाषा नहीं। वे बड़े शुद्ध विचारक हैं। वे भाव की झलक भी नहीं पड़ने देते। प्रेम की बात करेंगे तो बात जरा भाव की हो जाती है, हृदय की हो जाती है। बुद्ध की प्रज्ञा शुद्धतम है। उन्होंने विचार की परम शुद्धि पायी है, वे वहीं से बात करते हैं। इसीलिए बुद्ध की बात को समझने में किसी भी वैज्ञानिक को कोई अड़चन न होगी। बुद्ध की बात समझने में किसी गणितज्ञ को कोई अड़चन न होगी। बुद्ध की बात समझने में किसी बड़े विचारक को, तर्कनिष्ठ व्यक्ति को, बुद्धिमान को, बुद्धिवादी को कोई अड़चन न होगी। इसीलिए तो बुद्ध का प्रभाव है। दुनिया में जितना विचार का प्रभाव बढ़ा है, उतना ही बुद्ध का प्रभाव बढ़ा है। क्योंकि बुद्ध भाव की बात ही नहीं करते। भाव के साथ ही कुछ धुंधलापन छा जाता है। भाव के साथ ही सुबह का धुंधलका, अंध छा जाता है। विचार की खुली धूप है, ताजी धूप है, भरी दुपहर है-चीजें साफ-साफ हैं। बर्दैड रसल ने लिखा है कि यद्यपि मैं ईसाई घर में पैदा हुआ और बचपन से ही 165
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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