SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अकेलेपन की गहन प्रतीति है मुक्ति और कैंसर से मरें! और यहां करोड़ों हैं, महापापी, जो बिना कैंसर के मरेंगे। तो रमण के भाग्य में ऐसा क्या लिखा है? ____ मैं तुमसे कहना चाहता हूं कि अक्सर ऐसा हुआ है कि जिस व्यक्ति का आखिरी क्षण आ गया, इसके बाद जिसका जन्म न होगा-रमण या रामकृष्ण, यह उनका आखिरी, यह उनका शरीर से आखिरी संबंध है—उनकी पीड़ा सघन हो जाती है। तो जो तुम वर्षों-वर्षों और जन्मों-जन्मों तक भोगोगे, वे क्षण में भोग लेते हैं। _' कैंसर बड़ी सघन पीड़ा है। रामकृष्ण ने तो इलाज के लिए भी तैयारी नहीं दिखायी। क्योंकि उन्होंने कहा, अगर इलाज होगा, तो पीड़ा कौन झेलेगा? कंठ का कैंसर था उन्हें। अवरुद्ध हो गया था कंठ बिलकुल। न पानी पी सकते थे, न भोजन ले सकते थे। शरीर सूखता जाता था। और भयंकर पीड़ा थी, न सो सकते थे, न बैठ सकते थे, न लेट सकते थे। कोई स्थिति में चैन न था। विवेकानंद ने रामकृष्ण को जाकर कहा कि परमहंसदेव! हमें पता है कि अगर आप जरा भी मां को कह दें, काली को कह दें, तो यह दुख ऐसे ही विलीन हो जाएगा जैसे स्वप्न विलीन हो जाता है। कितने दिन हो गए आपने जल नहीं पीया! कितने दिन हुए अपने भोजन नहीं किया। आप कहें। रामकृष्ण हंसने लगे। उन्होंने कहा, मेरे बिना ही कहे कल रात मैंने काली को देखा और वह कहने लगी, रामकृष्ण! इस कंठ से तो बहुत भोजन कर लिया, अब दूसरे कंठों से भोजन करो। तो रामकृष्ण ने कहा, अब तुम्हारे सब कंठों से भोजन करूंगा। अब यह कंठ थक गया। अब इसके आने का समय भी समाप्त हो गया। अब यह जाने की घड़ी है। इलाज भी नहीं किया। क्योंकि पीड़ा को उसकी पूरी त्वरा में झेल लेना मुक्त हो जाना है। ___ तो मैं तुमसे यह दूसरी बात कहना चाहता हूं कि जरूरी नहीं है कि तमने बहुत-बहुत जन्मों तक पाप किए हैं, इसलिए उतने ही जन्मों तक तुम्हें पाप का फल भोगना पड़े। लेकिन अगर तुम्हारी तैयारी हो, तो एक क्षण में भी जन्मों के पाप सघन हो सकते हैं। उनकी पीड़ा बड़ी गहन होगी। और अगर तुम तटस्थ-भाव से देख सको, तो एक क्षण में जन्मों-जन्मों की कथा समाप्त हो जाती है। इसलिए अक्सर बुद्धपुरुष बड़ी संघातक बीमारियों से मरे हैं। जीसस का सूली पर लटकाया जाना, सोचने जैसा है। क्योंकि कर्म का सिद्धांत तो यही कहेगा कि यह सूली पर लटकाया जाना, किसी महापाप का फल है। जन्मों-जन्मों के पाप का फल है। ठीक है। एक क्षण में सूली पर जीसस ने वह सारी पीड़ा भोग ली, जो हम जन्मों-जन्मों में भी न भोग सकेंगे। ___हम छोटी-छोटी मात्रा में भोगते हैं। होमियोपैथी की मात्रा की तरह चलती है हमारी पीड़ा। छोटी-छोटी पुड़िया-दो-दो शक्कर की गोलियां ले रहे हैं। एलोपैथिक डोज भी लिया जा सकता है। और जो व्यक्ति राजी है, राजी का अर्थ है, 151
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy