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________________ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत ___ बुद्ध कहते हैं, 'न अंतरिक्ष में, न समुद्र के गर्भ में, न पर्वतों के विवर में प्रवेश कर-संसार में कोई स्थान नहीं है, जहां रहकर प्राणी पापकर्मों के फल से बच सके।' न अंतरिक्ष में, न समुद्र के गर्भ में, न पर्वतों के विवर में प्रवेश कर-संसार में कोई स्थान नहीं है, जहां घुसकर मृत्यु से मनुष्य बच सके। पाप का फल आएगा। पाप में आ ही गया है। तुम्हें थोड़ी देर लगेगी पहचानने में। फिर करना क्या है? बुद्ध कहते हैं, पाप के फल से बचो मत। उसके, पाप के फल को निष्पक्ष भाव से भोग लो। यह बड़ा कीमती सूत्र है। तुमने कुछ किया, अब उसका दुख आया, इस दुख को तटस्थ भाव से भोग लो! अब आनाकानी मत करो। अब बचने का उपाय मत खोजो। क्योंकि बच तुम न सकोगे। बचने की कोशिश में तुम और लंबा दोगे प्रक्रिया को। तुम इसे भोग लो जानकर कि मैंने किया था, अब फल आ गया। फसल बो दी थी, अब काटनी है; काट लो। लहूलुहान हों हाथ, पीड़ा हो, होने दो। लेकिन तुम तटस्थ भाव से- इसे खयाल में रखना-तटस्थ भाव! अगर तुमने इस फल के प्रति कोई भाव न बनाया, तुमने यह न कहा कि मैं नहीं भोगना चाहता, यह कैसे आ गया मेरे ऊपर, यह तो जबर्दस्ती है, अन्याय है क्योंकि ऐसी तुमने कोई भी प्रतिक्रिया की तो तुमने आगे के लिए फिर नया कर्म बो दिया। तुम कुछ मत कहो। तुम इतना ही कहो कि मैंने किया था, उसका फल मुझे मिल गया, निपटारा हुआ। सौभाग्यशाली हूं! बात खतम हुई। बुद्ध के ऊपर एक आदमी थूक गया। उन्होंने पोंछ लिया। दूसरे दिन क्षमा मांगने आया। बुद्ध ने कहा, तू फिक्र मत कर। मैं तो खुश हुआ था कि चलो निपटारा हुआ। किसी जन्म में तेरे ऊपर थूका था, राह देखता था कि तू जब तक न थूक जाए, छुटकारा नहीं है। तेरी प्रतीक्षा कर रहा था। तू आ गया, तेरी बड़ी कृपा! बात खतम हो गयी। अब मुझे इस सिलसिले को आगे नहीं ले जाना है। अब तू यह बात ही मत उठा। हिसाब-किताब पूरा हो गया। तेरी बड़ी कृपा है! ___ जो भी आए, उसे शांत भाव से स्वीकार कर लो। उसे गुजर जाने दो। अब कोई नया संबंध मत बनाओ, कोई नयी प्रतिक्रिया मत करो, ताकि छुटकारा हो, ताकि तुम वापस बाहर निकल आओ। धीरे-धीरे ऐसे एक-एक कर्म से व्यक्ति बाहर आता जाता है। और एक ऐसी घड़ी आती है कि सब हिसाब पूरा हो जाता है। तुम पार उठ जाते हो, तुम्हें पंख लग जाते हैं। तुम उस परम दशा की तरफ उड़ने लगते हो। जब तक कर्मों का जाल होगा, तुम्हारे पंख बंधे रहेंगे जमीन से। तुम आकाश की तरफ यात्रा न कर सकोगे। मृत्यु से भी बचने का कोई उपाय नहीं है, इसलिए बचने की चेष्टा छोड़ो। जिससे बचा न जा सके, उससे बचने की कोशिश मत करो। उसे स्वीकार करो। स्वीकार बड़ी क्रांतिकारी घटना है। बुद्ध ने इसके लिए खास शब्द उपयोग किया है-तथाता। तथाता का अर्थ है : जो है, मैं उसे स्वीकार करता हूं। मेरी तरफ से कोई 129
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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