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________________ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत हम तो अभी दुख से भी परेशान नहीं हैं। बुद्धपुरुष सुख से भी परेशान हो जाते हैं। हम तो अभी दुख से भी राजी हैं, बुद्धपुरुष सुख को भी उत्तेजना मानने लगते हैं, क्योंकि उसमें भी है तो उत्तेजना ही। तरंगें तो उठती हैं, व्याघात तो होता है। आंधी नहीं आती तो भी हवा तो चलती है, हल्के झकोरे तो आते हैं, कंपन तो होता है। निष्कंप दशा। तो बुद्ध कहते हैं उस दशा को, अनाश्रव पुरुष; ऐसे व्यक्ति जो परम रूप से जागरूक हुए। जिनके न तो भीतर अब कुछ जाता है और न जिनके बाहर कुछ जाता है। जो परम स्थिरता को उपलब्ध हुए, स्थितिप्रज्ञ हुए, वे परिनिर्वाण को प्राप्त होते हैं। उनका फिर कोई आगमन नहीं। न नर्क में, न स्वर्ग में, न संसार में। यहां एक बात बड़ी महत्वपूर्ण समझ लेने जैसी है। पुण्य का तुम्हें पता नहीं। सुख का तुम्हें पता नहीं। दुख का पता है, पाप का पता है। यह भी समझ में आ जाता है कि पाप से दुख मिलता है। तो भी एक बात मन में बड़ी गहरी बैठी है और वह यह कि तुम खाली न होना चाहोगे। अगर खाली होने और दुखी होने में चुनाव करना हो, तो तुम दुख को चुन लोगे। खाली होना दुख से भी बुरा लगता है। दुखी आदमी कहता है कि कम से कम दुख तो रहने दो, कुछ तो है। कोई तो बहाना है जीए जाने का। दर्द ही सही, कोई तो सहारा है। कुछ तो है जिसके आसपास उछल-कूद कर लेते हैं, आपाधापी कर लेते हैं। दुख भी न रहेगा, फिर क्या करेंगे? तुम थोड़ा सोचो, तुम्हारी जिंदगी में जितने दुख हैं, जरा कल्पना करो, अगर वे गिर जाएं आज अचानक, तुम कल क्या करोगे? तुम बड़े खाली-खाली अनुभव करोगे। तुम वापस प्रार्थना करने लगोगे कि दुख दे.दो, लौटा दो, कुछ तो था। उलझे थे, व्यस्त थे, करने को तो था। यह खालीपन तो काटेगा। __ अधिक लोग इसीलिए पाप किए चले जाते हैं कि खाली होने के लिए तैयार नहीं हो पाते। अधिक लोग इसीलिए दुख को भी पकड़े रहते हैं—चिल्लाते रहते हैं कि दुख न हो, दुख न हो-एक हाथ से हटाते हैं, दूसरे हाथ से खींचते रहते हैं; एक हाथ से काटते हैं, दूसरे हाथ से बोते रहते हैं, बीज फेंकते रहते हैं। उनकी तकलीफ मैं समझता हूं। तकलीफ यह है कि खाली होना तो दुख से भी बदतर हो जाएगा। नरक ही सही, कुछ तो होगा। काम तो होगा। उलझे तो रहेंगे। व्यस्त तो रहेंगे। खालीपन तो बहुत घबड़ा देता है, वीराना मालूम होता है। बहुत बार ऐसी घड़ी आ जाती है जब तुम खाली होते हो, तब तुम कुछ भी करने को तैयार हो जाते हो। चलो ताश ही खेलो, जुआ ही खेलो, शराब ही पी लो, शराब पीकर लड़ाई-झगड़ा कर आओ, शोरगुल मचा दो, कुछ कर गुजरो। तुमने कभी देखा कि जब तुम खाली होते हो, तो तुम कैसे बेचैन होने लगते हो! खाली होने की तैयारी करनी होगी, नहीं तो तुम दुख से कभी मुक्त न हो सकोगे। सुख का तुम्हें पता नहीं, पुण्य का तुम्हें पता नहीं। दुख का पता है, और कभी-कभी 125
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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