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________________ जीवन-मृत्यु से पार है अमृत 'यदि हाथ में घाव न हो, तो हाथ में विष लिया जा सकता है...' यह बड़ा महत्वपूर्ण सूत्र है! '...क्योंकि घाव न हो तो शरीर में विष नहीं लगता। इसी तरह नहीं करने वाले को पाप नहीं लगता है।' यदि हाथ में घाव न हो, तो तुम हाथ में विष भी ले लो तो भी कुछ हर्जा नहीं। घाव हो, तो घाव के माध्यम से विष शरीर में प्रवेश कर जाता है। खून की धारा में पहुंच जाता है। ____ अगर तुम्हारे जीवन में पाप करने की मूर्छा न हो, तो तुम मध्य, पाप के बीच भी खड़े हो जाओ, तो भी पाप से तुम छुए न जा सकोगे। तुम अस्पर्शित रहोगे। तुम्हें पाप चारों तरफ से घेर ले, तो भी तुम्हारे जीवन में प्रवेश न कर सकेगा। घाव चाहिए। किसी ने तुम्हें गाली दी, अगर तुम्हारे भीतर गाली को पकड़ने के लिए घाव न हो-अहंकार का घाव न हो तो गाली तुम्हारे चारों तरफ चक्कर लगाकर थक जाएगी। क्या करेगी? आएगी, अपने से चली जाएगी। अक्सर तो ऐसा होगा, उसी के पास लौट जाएगी जिसने भेजी थी। अपने घर वापस लौट जाएगी। अपने स्रोत में वापस लीन हो जाएगी। तुम कभी इस छोटे से प्रयोग को करके देखो। कोई तुम्हें गाली दे, तुम शांतमनः, अनुद्विग्न, अनुत्तेजित, चुपचाप बने रहो। देखो क्या होता है? तुम पाओगे, गाली तुम्हारा चक्कर लगाएगी, तुम्हारे चारों तरफ से रास्ता खोजेगी-कहीं घाव मिल जाए तो प्रवेश कर जाए। अगर तुम्हारे भीतर कोई घाव होगा, तो घाव सब तरह की उत्तेजना दिखाएगा कि यह क्या कर रहे हो? मेरा भोजन पास आया है, तुम गंवाए दे रहे हो, पकड़ो। लेकिन अगर तुम जागे रहे क्षणभर, तो तुम पाओगे, गाली जा चुकी। और गाली के पीछे तुम ऐसी शांति अनुभव करोगे जो तुम्हारे पास गाली के पहले भी नहीं थी। क्योंकि तूफान के बाद जो शांति अनुभव होती है, उसका स्वाद ही अनूठा है। और एक बार गाली देने का अवसर था और तुमने गाली न दी; गाली लेने का अवसर था, तुमने गाली न ली; तुम पाओगे, तुम्हारे अपने ऊपर एक तरह की मालकियत हो गयी। 'यदि हाथ में घाव न हो तो हाथ में विष नहीं लगता, लिया जा सकता है।' इसका यह अर्थ हुआ कि पुण्यात्मा व्यक्ति, सजग, जागरूक व्यक्ति अंधेरे से अंधेरी रात में भी खड़ा हो जाए तो अंधेरा उसे छूता नहीं। यही कृष्ण ने पूरी बात गीता में अर्जुन को कही है कि तू फिकर मत कर, अगर तेरे हाथ में घाव नहीं है, तो यह विष तू ले ले। अगर तेरे भीतर अहंकार नहीं है, तो इस युद्ध में तू उतर जा। फिर यह करुक्षेत्र भी धर्मक्षेत्र है। फिर इससे भी तझे कोई हानि न होगी। और अगर तेरे भीतर घाव है और तू जंगल भी भाग जाए, संन्यास ले ले, पहाड़ में छिप जाए, तो भी कोई फर्क न होगा। विष तुम्हें खोजता हुआ वहीं पहुंच जाएगा। असली सवाल तुम्हारे 117
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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