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________________ सुख या दुख तुम्हारा ही निर्णय जा, अब हमने तो तय किया है कि हम सुखी होंगे। अब दुख से हमने नाता तोड़ा, तू साथ आए तो शुभ, तू साथ न आए तो हम अकेले चलेंगे, लेकिन सुखी रहेंगे। तू गीत में कड़ी बन जाए तो ठीक। हम गाएं और तू ढपली बजाए तो ठीक, तू न बजाए तो हम बिना ढपली के ही गाएंगे, मगर अब गाने का तय कर लिया। इस क्रांति से तुम पाओगे कि तुम्हारी पत्नी आज नहीं कल, फिर से पुनः विचार करेगी। दुख का धंधा व्यर्थ गया । तुमने जड़ें काट दीं। अब दुखी होने का कोई अर्थ नहीं। या तो वह बदलेगी अपने को, या किसी और दुखी पुरुष में उत्सुक हो जाएगी। वह भी सौभाग्य है। कोई और उद्धारक मिल जाएगा। तुम इतने क्यों घबड़ाते हो, उद्धारकों की कोई कमी नहीं है। या तो वह बदल लेगी, अगर उससे तुम्हारा सच में कोई लगाव है, अगर उसके मन में तुम्हारे लिए कोई भी प्रेम है, तो वह अपने को बदलेगी। प्रेमी सदा बदलने को तत्पर होते हैं । अगर कोई भी प्रेम नहीं, तो यह दुख का घृणित और रुग्ण नाता तो छूटेगा। तो शायद वह किसी और को खोज लेगी, किसी और के साथ दुखी होने का रास्ता बना लेगी। कोई तुमने ही थोड़े ही दुख का ठेका लिया है? और भी बहुत हैं, जो तुमसे भी ज्यादा दुखी हैं। खोज ही लेगी किसी को । पर मेरी दृष्टि में—बहुत लोगों पर प्रयोग करके मेरा ऐसा अनुभव है—अगर दो में से एक भी सुखी होने लगे, तो दूसरे को सुखी होने का खयाल आना शुरू हो जाता है। क्योंकि उसे लगता है, यह क्या पागलपन है ? तुम जड़ें काटो दुख की। दुख की जड़ काटने का पहला उपाय है कि तुम सुखी हो जाओ। अब अगर तुम कहो कि पहले पत्नी सुखी होगी तब हम सुखी होंगे, तो फिर तुम सुख की बात ही मत पूछो। तो पत्नी भी यही सोचती होगी, जब पति सुखी होगा तब हम सुखी होंगे। फिर तो यह कभी भी न होगा । दूसरा बड़ा रहस्यपूर्ण है। और दूसरे के अंतरतम में प्रवेश का कोई उपाय नहीं है। आखिरी गहराई पर तो दूसरा अलग ही रह जाता है। तुम बाहर ही बाहर घूम सकते हो। दूसरे के सुख का भी पता लगाना कठिन है कि वह कैसे सुखी होगा । दूसरे का ही पता लगाना कठिन है कि वह कौन है ? मैं जीया भी दुनिया में और जान भी दे दी यह न खुल सका लेकिन आपकी खुशी क्या थी प्रेमी सोचते ही रहते हैं कि दूसरे की खुशी क्या थी ? वह कुछ पता ही नहीं चल पाता। कई बार तो ऐसा होता है कि जो तुम सोचते हो कि अब पकड़ लिया तुमने सूत्र, यही दूसरे की खुशी है; जब तुम करते हो, तुम पाते हो, दूसरा फिर का फिर दुखी है। उसे कोई अंतर नहीं पड़ता। दूसरे को भी शायद ठीक-ठीक पता नहीं है कि कौन सी चीज उसे खुश कर पाएगी। तुम अपने से ही पूछो, तुम्हें ठीक-ठीक पता है, किस आधार पर तुम प्रसन्न हो 97
SR No.002382
Book TitleDhammapada 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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