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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम पाओगे, बुद्ध पुरुष जो कहते हैं, वह तुम अपने अनुभव से भी पाओगे कि ठीक है। इसलिए बुद्ध ने बार-बार कहा है कि जो मैं कहता हूं, मेरे कहने के कारण मत मान लेना, तुम्हारे अनुभव से तालमेल बैठे तो ही। तालमेल बैठता ही है। सत्य है वही, जिसका तालमेल सभी के अनुभव से बैठेगा ही। हां, तुम बिठाओ ही न, आंख बंद किए बैठे रहो, बात और। आदमी बहलाए चला जाता है अपने को। सोचता है, अभी नहीं हुआ, कल हो जाएगा। इस बार चूक गए, अब न चूकेंगे। लेकिन यह निशाना कुछ ऐसा है कि कभी लगेगा ही नहीं। इसका स्वभाव लगना नहीं है। यह कुछ तुम्हारी तीरंदाजी पर निर्भर नहीं है। तुम कितने ही कुशल हो जाओ, यह निशाना चूकता ही रहेगा। क्योंकि वहां है ही नहीं कोई, निशाना जिस पर लग जाए। जितनी जल्दी तुम्हारे जीवन में इस विफलता का बोध हो जाए, उतनी ही जल्दी अंतर्यात्रा शुरू हो जाती है। . जिंदगी को माहो-अंजुम न उजाला देंगे तुम न इन झूठे खिलौनों से बहलते रहना चांद-तारों से रोशनी नहीं मिलती जिंदगी को। तुम इन झूठे खिलौनों से मत उलझते रहना। ये बाहर के खिलौने कोई रोशनी न दे सकेंगे। रोशनी भीतर से आती है। रोशनी तुम्हारे भीतर छुपी है, वहां जगाना है। एकांत में उसे जगाओ, बेघर होकर उसे जगाओ, वस्तुओं की मालकियत, दौड़ छोड़कर उसे जगाओ, भीड़ से संग-साथ छोड़कर उसे जगाओ। कहीं ऐसा न हो कि जिंदगी बीत जाए और ज्योति सोई की सोई ही रह जाए। "जिनका चित्त संबोधि अंगों से अच्छी तरह अभ्यस्त हो गया है, जो अनासक्त हो परिग्रह के त्याग में सदा निरत हैं, जो क्षीणास्रव और द्युतिमान हैं, वे ही संसार में निर्वाण को पा चुके हैं।' बड़ा अनूठा वचन है। अगर तुम जाग गए तो संसार में ही निर्वाण उपलब्ध हो जाता है। यह निर्वाण कोई परलोक नहीं है। निर्वाण कोई मंजिल नहीं है, जो कभी आगे मिलेगी। अगर तुम जाग गए तो अभी और यहीं है। यह मंजिल कुछ ऐसी है कि तुम्हारे कदमों में छुपी है। इसे उघाड़ना है, इसे खोजना नहीं है। कदम-कदम में तुम्हारे यह मंजिल छिपी है। अपने कदम के साथ है मंजिल लगी हुई मंजिल पे जो नहीं है वो हमारा कदम नहीं वह तुम्हारा कदम ही नहीं है, जो मंजिल पर नहीं है। अगर तुम्हें मंजिल दूर भविष्य में दिखाई पड़ती हो तो तुम भूल में हो; मंजिल तुम्हारे पैरों के नीचे दबी है। अगर तुम कहीं और खजाना खोजते हो तो भूल में हो; खजाने पर तुम खड़े हो। "जिनका चित्त...।' बुद्ध ने समाधि को पाने के वैसे ही अंग कहे हैं, जैसे पतंजलि ने ः सम्यक दृष्टि, 80
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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