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________________ एकला चलो रे तुमने खयाल किया, रात तुम तय करके सोते हो, सुबह चार बजे उठना है। अलार्म भी भर देते हो। फिर नींद में तुम अलार्म भी सुनते हो तो अलार्म सुनाई नहीं पड़ता। तुम्हारा स्वप्न अलार्म की भी व्याख्या कर लेता है। तुम्हारा स्वप्न कहता है, अहा! मंदिर की घंटियां बज रही हैं। अलार्म को काट दिया तुमने। अलार्म बज ही नहीं रहा, उठने का कोई सवाल ही नहीं। मंदिर की घंटियों के कलरव नाद में तुम और गहरी नींद में करवट लेकर सो जाते हो। सुबह जागकर पता चलता है, अपने को धोखा दे लिया। अलार्म से भी बचा लिया अपने को। नींद बड़ी कुशल है। मूर्छा बड़ी कुशल है। मूर्छा अपने को बचाने की कोशिश कर रही है—कहीं मिट न जाए। मूर्छा ऐसी व्याख्याएं करती है, जिससे नष्ट न हो जाए। मूर्छा ऐसी तरकीबें निकालती है कि तुम संदेह भी न कर पाओगे। इसलिए बुद्ध कहते हैं, 'ठीक से उपदिष्ट।' पहली बात : जीवंत गुरु से खोजना धर्म को; जहां उपदेश की सरिता अभी बहती हो। बासे शास्त्रों के पन्नों से मत खोजना। क्योंकि शास्त्र असहाय है। तुम कुछ अर्थ करोगे, गलत अर्थ करोगे, शास्त्र कुछ भी न कह सकेगा। ____ फर्क समझो; अलार्म की घड़ी बजती है तो तुम स्वप्न में व्याख्या कर लेते हो। लेकिन अगर तुमने किसी जीवित व्यक्ति को कह रखा है, अपनी पत्नी को कह रखा है कि उठा देना, तो तुम्हें व्याख्या न करने देगी। तो तुम्हें झकझोरेगी, जगाएगी; तुम लाख कोशिश करो कि अप्सरा दिखाई पड़ रही है और सुलाने की कोशिश कर रही है सपने में, लेकिन पत्नी इतनी आसानी से न मान जाएगी। तुम्हें खींचकर बाहर निकाल देगी। ___जीवंत व्यक्ति ही तुम्हें खींचकर बाहर निकाल पाएगा। शास्त्र में खतरा है, सिद्धांत में खतरा है। खतरा उनमें है, ऐसा नहीं है, खतरा तुममें है। और चूंकि शास्त्र तो असहाय है। तुम जो व्याख्या करोगे गलत, तो शास्त्र यह न कह सकेगा, गलत है यह व्याख्या। यह मेरा मंतव्य नहीं। यह मैंने कहना नहीं चाहा है, यह तुमने ही अपना हिसाब लगा लिया है। शास्त्र कुछ भी न कह सकेगा। शास्त्र चुपचाप पड़ा रहेगा। शास्त्र के पास कोई आत्मा नहीं है। जहां से आत्मा खो गई हो, जहां अंगारा बुझ गया हो, उस राख से मत खोजना अपने धर्म को; अन्यथा तुम्हारी पूरी जिंदगी राख हो जाएगी। और अक्सर ऐसा होता है कि हम राख से ही धर्म को खोजते हैं। जीवित व्यक्ति से तो हम बचते हैं। क्योंकि जीवित व्यक्ति के साथ खतरा है कि कहीं उठा ही न दे! मरे हुए को पूजते हैं। जीते को तो पहचानते भी नहीं। जब बुद्ध पृथ्वी पर चलते हैं तो कोई चिंता नहीं लेता। जब मर जाते हैं तो हजारों-हजारों साल तक पूजा चलती है। यह पूजा व्यर्थ है। जीवित बुद्ध के चरणों में झुकाया गया जरा सा सिर-क्रांति घटित हो जाती है। और यह हजारों साल की पूजा और ये पूजा के विधान और ये फूल और नैवेद्य, सब व्यर्थ चले जा रहे हैं। ये पत्थर की मूर्ति के 63
SR No.002381
Book TitleDhammapada 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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