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________________ एस धम्मो सनंतनो तू वो जुल्फ शानापरवर जिसे खौफ है हवा का मैं वो काकुले - परेशां जो संवर गई हवा से एक तो तुम बाल कंघी से सम्हाल लेते हो, खूब सम्हालकर घर से निकलते हो, जरा सी हवा की चोट लगी, बाल बिखर जाते हैं। तू वो जुल्फ शानापरवर जिसे खौफ है हवा का तो अगर तुम ऐसे सम्हालकर घर से बाल चले हो तो तुम हवा के झोंकों से डरोगे। चल क्या पाओगे ? मैं वो काकुले - परेशां जो संवर गई हवा से और मैं उस जुल्फ की तरह हूं, उन बालों की तरह हूं, जो आंधियों और हवाओं के कारण सम्हल गए। जिनको मैंने नहीं सम्हाला, हवाएं आयीं, उनके साथ खेलीं और सम्हाल गयीं जिंदगी बड़ी भिन्न-भिन्न होगी। इसलिए अक्सर बहुत सुविधा संपन्न परिवारों में संकल्पवान आत्माओं के जन्म नहीं होते। जिनको बचपन से ही सब तरह की सुरक्षा मिली हो और संघर्ष का कोई मौका न मिला हो, चुनौती न मिली हो, वहां प्रतिभाएं पैदा नहीं होतीं। वहां लय वीणा में ही पड़ी रह जाती है; कोई छेड़ता ही नहीं । और धीरे-धीरे कोई छेड़ न दे, इससे भय हो जाता है। तूफानों को संवारने दो। आंधियों को व्यवस्था देने दो । संघर्ष ही तुम्हारे जीवन की शांति बने तो तुम्हारी शांति का मूल्य अनिर्वचनीय होगा । एक ऐसी शांति भी है, जो घर के कोने में बैठकर सम्हाली जा सकती है। वह शांति मुर्दा होगी, मरघट की होगी। उसमें जीवन न होगा; उसमें हृदय की धड़कन न होगी। जीवन की अराजकता तुम्हारे भीतर एक अनुशासन लाए। जीवन ही तुम्हें अनुशासन दे । कडुवे -मीठे अनुभव, सुख-दुख के अनुभव, धूप-ताप के अनुभव, अंधड़, आंधियां, तूफान तुम्हारी नाव को मजबूत करें। तुम घबड़ाकर किनारे की छांव मत ले लेना । भीतर के जगत में आलोचक, निंदक तूफान उठा देता है । कोई तुम्हें गाली दे जाता है, एक आंधी तुम्हें घेर लेती है। तुम क्या करते हो ? जब तुम्हें कोई गाली दे जाता है, जब कोई तुम्हारी निंदा करता है, तब तुम क्या करते हो ? जिफ कहता था कि जब मेरे पिता की मृत्यु हुई, तो उन्होंने मुझसे कहा कि मेरे पास देने को कुछ भी नहीं है, लेकिन एक संपदा मेरे पास है, जो मेरे पिता ने मुझे दी थी। और उससे मैंने बड़ी बहुमूल्य फसलें काटीं जिंदगी में, वही कुंजी मैं तुझे दे जाता हूं। तू अभी बहुत छोटा है— नौ ही साल उसकी उम्र थी— लेकिन तू याद रखना। कभी न कभी यह तेरे काम आएगी। अभी तू समझ न सकेगा, लेकिन इसे याद रखना। जब समझ आ जाए, तब उपयोग कर लेना । जिएफ के मरते पिता ने कहा कि जब तुझे कोई गाली दे, तेरी कोई निंदा 216
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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