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________________ एस धम्मो सनंतनो फिर आदमी है; उसकी स्वतंत्रता और भी बड़ी है। उससे बड़ी कोई स्वतंत्रता नहीं है। वही उसकी गरिमा है, वही उसका दुर्भाग्य भी। क्योंकि जब उठने की क्षमता आती है तो गिरने की क्षमता साथ ही आ जाती है-उसी अनुपात में। बुद्ध हो सकते हो, चंगेजखान भी हो सकते हो। दोनों संभावनाएं एक साथ खुल जाती हैं। स्वाभाविक है। जो चढ़ेगा वही गिर सकता है। जो चढ़ नहीं सकता, वह गिर भी नहीं सकता। इसलिए मूढ़ तो सिर्फ आदमी हो सकते हैं। __मूढ़ होने का क्या अर्थ है ? मूढ़ होने का अर्थ है, कि तुमने जिद कर ली कि हम गिरने के लिए ही अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करेंगे, चढ़ने के लिए नहीं। मूढ़ होने का इतना ही अर्थ है कि हमारी जिद है कि हम गिरने में ही अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करेंगे। खयाल करो, कुछ लोग हैं, जो अपनी क्षमता का उपयोग कुछ बनाने के लिए करते हैं। कुछ लोग्न हैं, जो अपनी क्षमता का उपयोग कुछ तोड़ने के लिए करते हैं। कोई है जो मूर्ति बनाता है, और कोई है जो जाकर मूर्ति तोड़ आता है। जीसस की एक बहुत अदभुत मूर्ति दो वर्ष पहले रोम में तोड़ी गई। माइकल एंजलो की मूर्ति थी बनाई हुई। जीसस सूली से उतारे गए हैं और मरियम की गोद में उनका सिर है, मां की गोद में सिर है। कहते हैं, इससे ज्यादा सुंदर मूर्ति पृथ्वी पर दूसरी नहीं थी। वर्षों अथक श्रम करके माइकल एंजलो ने बनाई थी। इसका मूल्य, इसकी कीमत कूती नहीं जा सकती। इतनी जीवंत कोई मूर्ति न थी। संगमरमर पर इससे ज्यादा गहरा कभी कोई प्रयोग न हुआ था। और एक आदमी ने जाकर उसको हथौड़े से तोड़ दी। पकड़ा गया, पूछा गया, तो उसने कहा कि यह मुझे सदा से खलती थी। मैं भी चाहता हूं कि मेरा नाम भी इतिहास में अमर हो जाए। माइकल एंजलो ने बनाई, मैंने तोड़ी। हिटलर ने इतने लोग मारे। यह तोड़ने में रस है, बनाने में नहीं। मूढ़ता का अर्थ है, हमने जिद्द कर ली कि हम नीचे जाने में ही स्वतंत्रता का उपयोग करेंगे। तब तुम्हें कोई ऊपर नहीं उठा सकता। अगर तुमने ही तय कर लिया कि हम नीचे जाने में ही अपनी स्वतंत्रता का उपयोग करेंगे, तो तुम नर्क तक उतर सकते हो। __ आदमी एक सीढ़ी है। उसका एक पहला पायदान नर्क में टिका है। उसका आखिरी पायदान स्वर्ग में टिका है। यह तुम पर निर्भर है। ___ मैंने एक बड़ी प्राचीन कहानी सुनी है। एक मनोवैज्ञानिक और चित्रकार अपने जीवन के अंतिम दिनों में एक चित्र बनाना चाहता था, जिसमें सबसे ज्यादा निम्न आदमी की तस्वीर हो। उसने बनाया। एक कारागृह में एक आदमी ने सात हत्याएं की थीं, उसका जाकर उसने चित्र बनाया। जब वह चित्र बना रहा था, तब वह कुछ-कुछ हैरान हुआ। यह चेहरा कुछ पहचाना लगता था। जब वह चित्र बनाता रहा, बनाता रहा, तो यह उसको और भी ज्यादा साफ होने लगा। जैसे-जैसे नक्श उसने उभारे, वैसे-वैसे उसे यह चेहरा परिचित लगने लगा। 90
SR No.002380
Book TitleDhammapada 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages282
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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