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________________ एस धम्मो सनंतनो विचार में सदा दूसरे की याद बनी रहती है। तुम्हारे सब विचार दूसरे की याद हैं। अगर तुम ध्यान करो-विचार पर विचार करो बैठकर तो तुम पाओगे तुम्हारे विचारों में तुम करते क्या हो? तुम्हारे विचारों में तुम दूसरों की याद करते हो। बाहर से साथ न हों, तो भीतर से साथ हैं। एक युवा संन्यस्त होने एक गुरु के पास पहुंचा। निर्जन मंदिर में उसने प्रवेश किया। गुरु ने उसके चारों तरफ देखा और कहा कि किसलिए आए हो? उस युवक ने कहा कि सब छोड़कर आया हूं तुम्हारे चरणों में, परमात्मा को खोजना है। उस गुरु ने कहा, पहले ये भीड़-भाड़ जो तुम साथ ले आए हो बाहर ही छोड़ आओ। उस युवक ने चौंककर चारों तरफ देखा, वहां तो कोई भी न था। भीड़-भाड़ का नाम ही न था, वह अकेले ही खड़ा था। उसने कहा, आप भी कैसी बात करते हैं, मैं. बिलकुल अकेला हूं। तब तो उस युवक को थोड़ा शक हुआ कि मैं किसी पागल के पास तो नहीं आ गया! उस गुरु ने कहा, वह मुझे भी दिखाई पड़ता है। आंख बंद करके देखो, वहां भीड़-भाड़ है। उसने आंख बंद की, जिस पत्नी को रोते हुए छोड़ आया है, वह दिखाई पड़ी। जिन मित्रों को गांव के बाहर बिदा मांग आया है, वे खड़े हुए दिखाई पड़े। बाजार, दुकान, संबंधी, तब उसे समझ आया कि भीड़ तो साथ है। विचार बाहर की भीड़ के प्रतिबिंब हैं। विचार, जो तुम्हारे साथ नहीं हैं उनको साथ मान लेने की कल्पना है। ध्यान में तुम बिलकुल अकेले हो; या अपने ही साथ हो, बस। __ "जितनी भलाई माता-पिता या दूसरे बंधु-बांधव नहीं कर सकते, उससे अधिक भलाई सही मार्ग पर लगा चित्त करता है।' सही मार्ग से क्या मतलब? अपनी तरफ लौटता। जिसको पतंजलि ने प्रत्याहार कहा है। भीतर की तरफ लौटता। जिसको महावीर ने प्रतिक्रमण कहा है। अपनी तरफ आता हुआ। जिसको जीसस ने कहा है, लौटो, क्योंकि परमात्मा का राज्य बिलकुल हाथ के करीब है। वापस आ जाओ। __ यह वापसी, यह लौटना ध्यान है। यह लौटना ही चित्त का ठीक लगना है। तुम चित्त के ठीक लगने से यह मत समझ लेना कि अच्छी-अच्छी बातों में लगा है। फिल्म की नहीं सोचता, स्वर्ग की सोचता है। स्वर्ग भी फिल्म है। अच्छी-अच्छी बातों में लगा है। दुकान की नहीं सोचता, मंदिर की सोचता है। मंदिर भी दुकान है। अच्छी-अच्छी बातों में लगा है। यह मत समझ लेना मतलब कि पाप की नहीं सोचता, पुण्य की सोचता है। पुण्य भी पाप है। अच्छी-अच्छी बातों का तुम मतलब मत समझ लेना कि राम-राम जपता है। मरा-मरा जपो कि राम-राम जपो, सब बराबर है। दूसरे की याद, पर का चिंतन! फिर वह मंदिर का हो कि दुकान का, राम का हो कि रहीम का, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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