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________________ एस धम्मो सनंतनो तुम्हारे पास है वह तुम्हारे पास है। उसे न कभी किसी ने छीना है. न कोई छीन सकेगा। असलियत में संपदा की परिभाषा यही है कि जो छीनी न जा सके। जो छीनी जा सके वह तो विपदा है, संपदा नहीं है। वह संपत्ति नहीं है, विपत्ति है। ___ तो दो डर हैं आदमी जिनसे कंपता रहता है। कहीं मेरा छिन न जाए। स्वभावतः तुमने जो तुम्हारा नहीं है उसको मान लिया मेरा, इसलिए भय है। वह छिनेगा ही। सिकंदर भी न रोक पाएगा, नेपोलियन भी न रोक पाएगा, कोई भी न रोक पाएगा। वह छिनेगा ही। वह तुम्हारा कभी था ही नहीं। तुमने नाहक ही अपना दावा कर दिया था। तुम्हारा दावा झूठा था, इसलिए तुम भयभीत हो रहे हो। और जो तुम्हारा है, वह कभी छिनेगा नहीं। लेकिन उसकी तरफ तुम्हारी नजर नहीं है। जो अपना नहीं है, उसको मानकर बैठे हो। और जो अपना है, उसे त्याग कर बैठे हो। संसार का यही अर्थ है। संपदा का त्याग और विपदा का भोग। संसार का यही अर्थ है, जो अपना नहीं है उसकी घोषणा कि मेरा है, और जो अपना है उसका विस्मरण। जिसको स्वयं का स्मरण आ गया वह निर्भय हो जाता है। निर्भय नहीं, अभय हो जाता है। वह भय से मुक्त हो जाता है। जो तुम्हारा नहीं है उसने ही तो तुम्हें भिखारी बना दिया है। मांग रहे हो, हाथ फैलाए हो। और कितनी ही भिक्षा मिलती जाए, मन भरता नहीं। मन भरना जानता ही नहीं। बुद्ध कहते हैं, मन की आकांक्षा दुष्पूर है, वासना दुष्पूर है, वह कभी भरती नहीं। ___ एक सम्राट के द्वार पर एक भिखारी खड़ा था। और सम्राट ने कहा कि क्या चाहता है? उस भिखारी ने कहा, कुछ ज्यादा नहीं चाहता, यह मेरा भिक्षापात्र भर दिया जाए। छोटा सा पात्र था। सम्राट ने मजाक में ही कह दिया कि अब जब यह भिखारी सामने ही खड़ा है, और पात्र भरवाना है, और छोटा सा पात्र है, तो क्या अन्न के दानों से भरना, स्वर्ण अशर्फियों से भर दिया जाए। __ मुश्किल में पड़ गया। स्वर्ण अशर्फियां भरी गयीं, सम्राट भी हैरान हुआ, वे स्वर्ण अशर्फियां खो गयीं। पात्र खाली काखाली रहा। लेकिन जिद पकड़ गई सम्राट को भी कि यह भिखारी, यह क्या मुझे हराने आया है! वह बड़ा सम्राट था, उसके खजाने बड़े भरपूर थे। उसने कहा कि चाहे सारा साम्राज्य लुट जाए, लेकिन इस भिखारी से थोड़े ही हारूंगा! उसने डलवायीं अशर्फियां। लेकिन धीरे-धीरे उसके हाथ-पैर कंपने लगे। क्योंकि डालते गए और वे खोती गयीं। आखिर वह घबड़ा गया। वजीरों ने कहा कि ये तो सब लुट जाएगा। और यह पात्र कोई साधारण पात्र नहीं मालूम होता। यह तो कोई जादू का मामला है। यह आदमी तो कोई शैतान है। उस भिखारी ने कहा, मैं सिर्फ आदमी हूं, शैतान नहीं। और यह पात्र आदमी के हृदय से बनाया है। हृदय कब भरता है? यह भी नहीं भरता। इसमें कुछ शैतानियत नहीं
SR No.002379
Book TitleDhammapada 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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