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________________ एस धम्मो सनंतनो यथागारं सुच्छन्नं वुट्टी न समतिविज्झति। एवं सुभावितं चित्तं रागो न समतिविज्झति।।१२।। गौतम बुद्ध दार्शनिक नहीं हैं। मेटाफिजिक्स और परलोक के प्रश्नों में उनकी जरा भी—जरा भी–रुचि नहीं है। उनकी रुचि है मनुष्य के मनोविज्ञान में। उनकी रुचि है मनुष्य के रोग में और मनुष्य के उपचार में। बुद्ध ने जगत को एक उपचार का शास्त्र दिया है। वे मनुष्य जाति के पहले मनोवैज्ञामिक हैं। इसलिए बुद्ध को समझने में ध्यान रखना, सिद्धांत या सिद्धांतों के आसपास तर्कों का जाल उन्होंने जरा भी खड़ा नहीं किया है। उन्हें कुछ सिद्ध नहीं करना है। न तो परमात्मा को सिद्ध करना है, न परलोक को सिद्ध करना है। उन्हें तो आविष्कृत करना है, निदान करना है। मनुष्य का रोग कहां है? मनुष्य का रोग क्या है? मनुष्य दुखी क्यों है ? यही बुद्ध का मौलिक प्रश्न है। __ परमात्मा है या नहीं; संसार किसने बनाया, नहीं बनाया; आत्मा मरने के बाद बचती है या नहीं; निर्गुण है परमात्मा या सगुण-इस तरह की बातों को उन्होंने व्यर्थ कहा है। और इस तरह की बातों को उन्होंने आदमी की चालाकी कहा है। ये जीवन के असली सवाल से बचने के उपाय हैं। ये कोई सवाल नहीं हैं। इनके हल होने से कुछ हल नहीं होता। नास्तिक मानता है ईश्वर नहीं है, तो भी वैसे ही जीता है। आस्तिक मानता है ईश्वर है, तो भी उसके जीवन में कोई भेद नहीं। अगर नास्तिक और आस्तिक के जीवन को देखो तो तुम एक सा पाओगे। तो फिर उनके विचारों का क्या परिणाम है? परलोक है या नहीं, इससे तुम नहीं बदलते। और बुद्ध कहते हैं, जब तक तुम न बदल जाओ, तब तक समय व्यर्थ ही गंवाया। बुद्ध की उत्सुकता तुम्हारी आंतधिक क्रांति में है। बुद्ध बार-बार कहते थे, कि मनुष्य की दशा उस आदमी जैसी है वो एक अनजानी राह से गुजरता था और एक तीर आकर उसकी छाती में लग गया। वह गिर पड़ा है। लोग आ गए हैं। लोग उसका तीर निकालना चाहते हैं। लेकिन वह कहता है, ठहरो! पहले मुझे यह पता चल जाए कि तीर किसने मारा। ठहरो, पहले मुझे यह पता चल जाए कि तीर उसने क्यों मारा। ठहरो, मुझे यह पता चल जाए कि तीर आकस्मिक रूप से लगा है या सकारण। ठहरो, मुझे यह पता चल जाए कि तीर विषबुझा है, या बिन-विषबुझा। बुद्ध ने कहा, वह आदमी दार्शनिक रहा होगा। वह बड़े ऊंचे सवाल उठा रहा है। लेकिन जो लोग इकट्ठे थे उन्होंने कहा, यह सवाल तुम पीछे पूछ लेना। पहले तीर निकाल लेने दो, अन्यथा पूछने वाला मरने के करीब है। उत्तर भी मिल जाएंगे तो हम किसे देंगे? और अभी इन प्रश्नों की कोई आत्यंतिकता नहीं है। अभी तीर 58
SR No.002378
Book TitleDhammapada 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1991
Total Pages266
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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